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________________ वर्षनन्दि हर्षनन्दि ( प्रथम ) हर्षनन्दि ( द्वितीय) इन्द्रनन्दि ( द्वितीय) इस गुरुपरम्परासे और अन्यत्र प्राप्त पन्थप्रशस्तिसे विरोध आता है। बम्बई और कारंजाकी प्रतियोंमें निम्नलिखित पद्य प्राप्त होते हैं स श्रीवासवनंदिसन्मुनिपतिः शिष्यस्तदीयो भवेत् ॥ शिष्यस्तस्य महात्मा चतुरनियोगेषु चतुरमतिविभवः । श्रीबप्पनंदिगुरुरिति बुवमधुपनिषेवितपदान्जः ।। लोकं यस्य प्रसादादजान मुनिजनस्तत्पुराणार्थवेदी यस्याशास्तंभमूर्धान्यतिविमलयशः श्रीवितानो निबद्धः । कालास्तायेन पौराणिककविवृषभा द्योतितास्तत्पुराणव्याख्यानाद्बष्पनंदिप्रथितगुणगणस्तस्य किं वयतेत्र शिष्यस्तस्येन्द्रनंदिविमलगुणगणोद्दामधामाभिरामः प्रज्ञा-तीक्ष्णास्रधारा-विदलितबलाज्ञानवल्लीवितानः । श्री जैन सिद्धान्तभवन आराकी पाण्डुलिपिमें दशम परिच्छेदके अन्त में जो प्रशस्ति दी गयी है, वह इससे भिन्न है। आग वाली प्रतिमें अंकित गुरुपरम्परा रायबहादुर डा. हीरालालजी द्वारा उल्लिखित गुरुपरम्पराके समान है। यथा स श्रीवासवनन्दिसन्मुनिपति: शिष्यस्तदीयो भवेत् ॥ शिष्यस्तस्य महात्मा चतुरनियोगेषु चतुरमिति विभवः । श्री वर्षनन्दिगुरुरिति बुधमघुपनिसेवितपदान्जः ।। लोके यस्य प्रसादादजनि मुनिजनः सत्पुराणार्थवेदी । यस्याशास्तम्भमुर्धन्यतिविमलयशः श्रीवितानो निबद्धः xxxपौराणिककविवृषभाद्योतितास्तत्पुराण व्याख्यानाद्-हर्षनन्दि प्रथितगुणस्तस्य किं वयतेऽत्र १. जैन प्रशस्तिसंग्रह, प्रथम भाग, दिल्ली पृ. १३८-१३९ पर उद्धृत । प्रबुद्धाचार्य एवं परम्परापोषकाचार्य ; १७९
SR No.090509
Book TitleTirthankar Mahavira aur Unki Acharya Parampara Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherShantisagar Chhani Granthamala
Publication Year
Total Pages466
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size10 MB
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