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सूक्ष्मांतरितदूरस्वभावानामर्थानां यथोक्तस्योपदेशस्य करणं तत्साक्षात्करणमतरेणानुपपन्न।" इस प्रकार आचार्यने सर्वज्ञको सिद्धि कर अर्हन्तको सर्वज्ञ बतलाया है।
मल्लिषण उभयभाषाविचक्रवर्ती आचार्य मल्लिषेण अपने युगके प्रख्यात आचार्य है। इन्हें करिशेखरका बिस्तर पा । गया ...
भाषाद्वयकवितायां कवयो दर्प वहन्ति तावदिह ।
नालोकयन्ति यावत्कविशेखरमल्लिषेणमुनिम् ॥ ये अपनेको सकलागमवेदी, लक्षणवेदी और तर्कवेदी भी लिखते हैं । आचार्य मल्लिषेणको कवि और मन्त्रवादीके रूपमें विशेष ख्याति है । ये उन अजितसेनकी परम्परामें हुए हैं, जो गङ्गनरेश राचमल्ल और उनके मन्त्री तथा सेनापति चामुण्डरायके गुरु ये और जिन्हें नेमिचन्द्र सिद्धान्तचक्रवर्तीने भवनगुरु कहा है। मल्लिषेणके गुरु जिनसेन हैं और जिनसेनके कनकसेन तथा कनकसेनके अजितसेन गुरु हैं। मल्लिषेणने 'नागकुमारचरित'को अन्तिम प्रशस्तिमें जिनसेनके अनुज या सतीर्थ नरेन्द्रसेनका भी स्मरण किया है। नरेन्द्रसेननामके कई आचार्य हर हैं । अतः निश्चितरूपसे यह नहीं कहा जा सकता कि यह नरेन्द्रसेन कौन हैं?
तस्यानुजश्चास चरित्रवृत्तिः प्रख्यातकीतिर्भुवि पुण्यत्तिः ।
नरेन्द्रसेनो जितवादिसेनो विज्ञातत्तत्त्वो जितकामसूत्र: ॥ प्रशस्तिके पांचवें पद्यमें मल्लिषेणने नरेन्द्रसेनको अपना गुरु भी लिखा है
तच्छिष्यो विबुधाग्रणीगुणनिधिः श्रीमल्लषेणाह्वयः।
संजातः सकलागमेषु निपुणो वाग्देवतालंकृतिः ।। आचार्य मल्लिषणने भारतीकल्प, कामचाण्डालीकल्प, ज्वालिनीकल्प और पपावतीकल्प ग्रन्थोंकी प्रशस्तियोंमें अपनेको कनकसेनका शिष्य और जिनसेनका प्रशिष्य बतलाया है । असम्भव नहीं कि जिनसेन और उनके अनुज नरेन्द्रसेन दोनों ही मल्लिषेणके गुरु रहे हों-दोनोंसे भिन्न-भिन्न विषयोंका अध्ययन
१. बृहत्सर्वशसिसि, माणिकचन्द्र ग्रन्थमाला, पृ० १३० । २. जैन साहित्य और इतिहास, पृ. ३१४ । ३. नागकुमारचरित, प्रशस्ति, पद्य ४ । ४. वही, पद्य ५।
प्रयुगाचार्य एवं परम्परापोषकामाय : १६९