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________________ जयसेनाचार्यने अपनी टीकाओं में अनेक श्लोक और गाथाएँ अन्य ग्रन्थोंसे उद्धृत की हैं। इन श्लोकों और गाथाओंकी परीक्षा करनेसे जयसेनाचार्यके समयपर प्रकाश पड़ता है। उद्धत समस्त पद्योंकी छानबीन करना तो शक्य नहीं, पर उन्होंने द्रव्यसंग्रह, तत्त्वानुशासन, चारित्रसार, त्रिलोकमार और लोकविभाग प्रभूति ग्रन्थोंका उल्लेख किया है। चारित्रसारके रचयिता वामगडराय हैं और इन्हींके समकालीन आचार्य नेमचन्द्र सिद्धान्तचक्रवर्तीने त्रिलोकसारको ग्चना की है । चामुण्डरायने अपना चामुण्डपुराण शक संवत् ९०० ( ई० सन् ९७८ ) में समाप्त किया है। अतः निश्चित है कि जयसेन ई० सन् १७८ के पश्चात् ही हुए हैं। उनके ममयको यह सीमा पूर्वाद्धं सीमाके रूपमें मानी जा सकती है। जयसेनने पञ्चास्तिकाधकी टीका ( पृ० ८ ) में वीरनन्दिके 'आचारसार' ( ४९५-९.६ ) के दो पद्य उद्धृत किये हैं। कनाटककविचरितेके अनुसार इन वीरनन्दिने अपने आचारमारपर एक कन्नड़-टीका शक संवत् १०७६ ( ई० सन् ११५४ ) में लिखी है । अतः जयसेन ई० सन् ५. के पश्चात् ही हए हो। डॉ० ए० एन० उपाध्येने लिखा है कि नयकोतिके शिष्य बालचन्द्रने कुन्दकुन्दके तीनों प्राभतोंपर कन्नड़में टीका लिखी है और उनकी टीकाका मूलाधार जयसेनको टीकाएँ हैं। इनकी टीकाका रचनाकाल ई० सन् की १३वीं शताब्दीका प्रथम चरण है। अतः जयमेनका समय इससे पूर्व ई० सन्की ११वीं शताब्दीका उत्तरार्ध या १२वीं शताब्दीका पूर्वाध माना जा सकता है। रचना-परिचय ___जयसेनाचार्यने कुन्दकुन्दने समयसार, प्रवचनसार और पञ्चास्तिकाय इन तीनों ग्रन्थोंपर अपनी टीकाएं लिखी हैं। इन्होंने आचार्य अमृतचन्द्र द्वारा की गयी टीकासे भिन्न शैलीमें अपनी टीका लिखी है। अमृतचन्द्रने समयसारमें जहाँ ४१५ गाथाओंपर टीकाएँ लिखी हैं, वहाँ जयसेनाचार्यने ४४५ गाथाओंपर । इनकी टीकाओंकी यह प्रमुख विशेषता है कि प्रत्येक गाथाके पदोंका शब्दार्थ पहले स्पष्ट करते हैं, तदनन्तर "अयमत्राभिप्रायः" आदि लिखकर उसका स्पष्टीकरण करते हैं। इनकी टीकाओंका नाम तात्पर्यवृत्ति है। शब्दशः समस्त मूलग्रन्थ टीकामें समाविष्ट है। इसके अतिरिक्त अनेक उद्धरण भी टीकामें दिये हैं। इससे इनकी अध्ययनशीलता व्यक्त होती है। समयसारकी टीकामें सिद्धभक्ति, मूलाचार, परमात्मप्रकाश, गोम्मटसार आदि ग्रन्थोंके उद्धरण उपलब्ध हैं। प्रवचनसारको टीका आरम्भ करते हुए बताया है कि मध्यमरुचिधारी १. प्रवचनसार, प्रस्तावना, पृ० १०४ । प्रबुशाचार्ग एवं परम्परापोषकाचार्ग : १४३
SR No.090509
Book TitleTirthankar Mahavira aur Unki Acharya Parampara Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherShantisagar Chhani Granthamala
Publication Year
Total Pages466
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size10 MB
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