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पुर काठियावाड़का वर्तमान बढवान है। डॉ हीरालाल जैन इम नगरको मध्यप्रदेशके चार जिलंके बदनावर स्थानको मानते हैं। डॉ० जनका अभिमत है कि इम बदनावरमें प्राचीन उन मन्दिरोंके भग्नावशेष आज भी विद्यमान हैं और यहाँ दुतग्यिा--प्राचीन दोस्तटिवा नामक ग्राम भो गमीप है तथा हरिवंशी वणित गज्य-विभाजनकी मीमार्ग भी इम म्यानसे सम्यक् घटित हो जाती है। ___डॉ. जनका कथन अधिक तर्कसंगत प्रतीन होता है। यतः जिनसेन म ५०-६० वर्ष पहले ही पुन्नाट मंघका उत्तर भारत में प्रवेश हो चुका था । अतः गिरनारकी यात्राक लिये संघ गया और वहाँ हरिवंशपुराण नथा उसके १५० वर्ष बाद कथा-कोपकी रचना हुई, यह बात संदिग्ध-सी प्रतीत होती है। वर्धमानपुरको जन संघका केन्द्र होना चाहिए, जहाँ उक्त दोनो विशाल ग्रन्थ लिम्वे गए । बहुन मम्भव है राष्ट्रकूट नरेशोंका मालवामें प्रभुत्व स्थापित होनेपर बदनावग्में जन पोटकी स्थापना हुई हो । जिस प्रकार पञ्चस्तूपान्वयो वीरसेन स्वामीका बाटनगरम ज्ञानकेन्द्र था, सम्भवतः उसी प्रकार अमितसनने बदनावरमें ज्ञानकेन्द्र की स्थापना की हो और उसी केन्द्रमै उक्त दोनों ग्रन्थीकी रचना मम्पन्न हुई हो। स्थिति-काल
जिनसेनने ग्रन्थ-रचनाका समय स्वयं निदिष्ट किया है । अतः इनके स्थितिकालके सम्बन्धमें मतभेदकी आशंका नहीं की जा सकती। शक संवत् ७०५ ( ई० मन् ७८३ ) में हरिवंशपुराणको रचना सम्पन्न हुई है। यदि हरिवंशपुराणक समय कविकी आय ३०-३५ वर्षकी मानी जाय, तो कविका जन्म अनुमानतः ई० मन् ७४८ के लगभग आता है। यतः इतनी प्रौढ़ रचना इस अवस्थाके पूर्व नहीं हो सकती । कविकी आयु ७०-७५ वषं होना चाहिये । अतएवं आचार्य जिनमेन प्रथमका समय लगभग ई० मन् ७४८-८१८ मिद्ध होता है।
कुवलयमालाके कर्ता उद्योतनसूरिने अपनी 'कुवलयमाला में जिस तरह विषेणके 'पद्मचरित' और 'जटासिनन्दिके 'वराङ्गचरिस' को स्तुति की है, उम्मी प्रकार हरिवंशकी भी। उन्होंने लिखा है कि मैं हजारों विद्वज्जनोंके
१. बृहत्कथाकोषकी प्रस्तावना, पृ० १२१ । २. इण्डियन कल्चर, खण्ड ११. मन् १५४४-४५, १० १६१ तथा जैन सिद्धान्त भास्कर
भाग १२, किरण ।
प्रबृक्षाचार्य एवं परम्परापोपकाचार्य : ३