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________________ नन्दि है । अतएव इन दोनोंका ऐक्य संभव नहीं है। पर यह निश्चित है कि ये पद्मन को सही परमात् हुए हैं, क्योंकि अमतचन्द्राचार्यका प्रभाव 'निश्चयपञ्चाशत् प्रकरणकी अनेक गाथाओंपर दिखलाई पड़ता है । अतः इनकी पूर्वावधि ई० सन् दशम शतीका पूर्वार्ध होना चाहिये । जयसेनाचार्यने अपनी पंचास्तिकायटीकामें एकत्वसप्ततिप्रकरणका निम्नलिखित पद्य पृ० २३५ पर उद्धत किया है दर्शनं निश्चयः स बोधस्तद्बोध इष्यते । स्थितिरत्रव चरितमिति योगः शिवाश्रयः ।। पद्मप्रभमलधारिदेवने भी यही पद्य नियमसारकी टीका पृ०४७ पर उद्धत किया है। अतः यह स्पष्ट है कि पञ्चविंशतिकाके कर्ता पनन्दि जयसेनाचार्य और नियमसारटीकाके कर्ता पद्मप्रभमलधारिदेवके पूर्ववर्ती हैं । जयसेनाचार्यका समय डॉ० ए० एन० उपाध्येके मतानुसार ई. सन्की १२वीं शताब्दीका उत्तरार्द्ध है । अत: यह पद्मनन्दिके समयकी उत्तर सीमा मानी जा सकती है। पद्मप्रभमलधारीने भी नियमसारटीकाके आरम्भमें अपने गुरु वीरनन्दिको नमस्कार किया है। श्री प्रेमीजीने इस परसे अनुमान लगाया है कि परप्रभ और पद्मनन्दि एक ही गरुके शिष्य रहे होंगे तथा एक अभिलेखके आधार पर पचप्रभ और उनके गुरु वीरनन्दिको विन्सं० १२४२में विद्यमान बतलाया है। पर पद्मप्रभसे पूर्व जयसेनाचार्यने पद्मनन्दिकी एकत्वसप्ततीसे पद्य उद्धृत किया है और पद्मप्रभने जयसेनकी टीकाओंका अवलोकन किया था। यह उनकी टीकाओंके अध्ययनसे स्पष्ट है। अत: पअनन्दि और पद्मप्रभके मध्यमें जयसेनाचार्य हुए हैं, यह निश्चित है। पद्मनन्दिपञ्चविंशतिकाकी प्रस्तावनामें बताया गया है कि पद्मनन्दिपर गुणभद्राचार्यके आत्मानुशासनका प्रभाव है। तुलनाके लिए एक पद्य दिया जाता है, जिसमें आचार्य गुणभद्रने मनुष्यपर्यायका स्वरूप दिखलाते हुए उसे ही तपका साधन कहा है __ दुर्लभमशुद्धमपसुखमविदितमृतिसमयमल्पपरमायुः । मानुष्यमिहैव तपो मुक्तिस्तपसैव तत्तप: कार्यम् ॥ अर्थात् दुर्लभ, अशुद्ध, अपसुख, अविदित मृति-समय और अल्प परमायु ये पाँच विशेषण मनुष्यपर्यायके लिए दिये गये हैं। इसी अभिप्रायको सूचित १. पद्मनन्दिपञ्चविंशतिका, शोलापुर संस्करण, ४१४ । २. जैन साहित्य और इतिहास, पृ. ४०७ । ३. आत्मानुशासन, शोलापुर संस्करण, पद्म १११ । १२६ : तीर्थंकर महावीर और उनकी आचार्मपरम्परा
SR No.090509
Book TitleTirthankar Mahavira aur Unki Acharya Parampara Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherShantisagar Chhani Granthamala
Publication Year
Total Pages466
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size10 MB
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