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________________ १. उपोद्घातप्रस्तान। २. भरतरावत्तवर्णन 1 ३. पर्वत-नदी-भोगमिवर्णन | ४. महाविदेहाधिकार। ५, मंदरगिरि-जिनभवनवर्णन । ६. देवकुरु-उत्तरकुरु-विन्यासप्रस्ताव । ७, कच्छाबिजयवर्णन । ८. पूर्वविदेहवर्णन । ९, अपरविदेहवर्णन । १०. लवणसमुद्रवर्णन 1 ११. बहिरुपसंहारद्वीप-सागर-नरकगति-देवगति-सिद्धक्षेत्रवर्णम। १२. ज्यारिलोकवान १३. प्रमाणपरिच्छेद । प्रथम उद्देश्यमें ७४ गाथाएँ हैं। प्रथम छह गाथाओंमें पञ्चपरमेष्ठीको नमस्कार किया है, तदनन्तर ग्रन्थ रचनेको प्रतिज्ञा की है | पश्चात् तीर्थकर महाबीरको आचार्यपरम्पराका निर्देश करते हुए बताया है कि विपुलाचलपर स्थित्त वर्धमान जिनेन्द्रने प्रमाण-नययुक्त अर्थ गौतम गणधरके लिए कहा । गौतम गणधरने सुधमस्वामी ( लोहाचार्य ) को कहा और उन्होंने जम्बस्वामी को। ये तीनों अनुबद्धकेवली थे। पश्चात् १. नन्दी, २. नन्दिमित्र, ३. अपराजित, ४. गोबर्द्धन और ५. भद्रबाहु ये पाँच श्रुतकेवली हुए। तदनन्तर १. विशाखाचार्य, २. प्रोष्ठिल, ३. क्षत्रिय, ४. जय, ५. नाग, ६. सिद्धार्थ, ७. धतिषेण, ८. विजय, ९, बुद्धिल्ल, १०. गङ्गदेव और ११. धर्मसेन ये ग्यारह आचार्य दशपूर्वाक ज्ञाता हुए। तत्पदचात् १ नक्षत्र, २. यशपाल, ३. पाण्डु, ४. ध्रुवषेण और ५. कंसाचार्य ये पाँच ११ अंगोंके धारी हुए । तदुपरान्त १. सुभद्र, २. यशोभद्र, ३. यशोवाहु और ४. लोहाचार्य ये आचाराङ्गके धारक हुए। इन आचार्योंके निर्देशके पश्चात् पच्चीस कोडाकोड़ी उद्वारपल्यप्रमाण समस्त द्वीप-सागरोंके मध्यमें स्थित जम्बूद्वीपके विस्तार, परिधि और क्षेत्रफलका कथन किया है। उसकी वेदिकाका वर्णन करते हुए बताया है कि उसके विजय, वैजयन्त, जयन्त और अपराजित नामक चार गोपुरद्वारोंपर क्रमशः उन्हीं नामोंके धारक प्रभावशाली चार देव स्थित हैं। यहाँ इनमेंसे प्रत्येकके बारह हजार योजन प्रमाण सम्बे-चौड़े नगर बतलाये हैं। जम्बुद्वीपमें सात क्षेत्र, एक प्राचार्ग एवं परम्परापोषवाचार्ग : १११
SR No.090509
Book TitleTirthankar Mahavira aur Unki Acharya Parampara Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherShantisagar Chhani Granthamala
Publication Year
Total Pages466
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size10 MB
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