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शुक्ला पनाम cि की है, अत: रचयिताका समय इससे पूर्व होना निश्चित है।
नन्दिसंघको पट्टावलीमें वारांके भट्टारकोंकी गद्दीका उल्लेख आया है, जिसमें वि० सं० ११४४ से वि सं० १२०६ तकके बारह भट्टारकोंके नाम दिये गये हैं। इस भट्टारकपरम्परासे सम्बद्ध पद्मनन्दिको गुरुपरम्परा है । राजपूतानेके इतिहासमें गुहिलोतवंशी राजा भरवाहनके पुत्र शालिवाहनके उत्तराधिकारी शक्तिकुमारका उल्लेख मिलता है, इस ग्रन्थम उल्लिखित यही राजा है। आटपुर (आहाड़) के अभिलेखमें गुरुदत्त (गुहिल) से लेकर शक्तिकुमार तककी पूरी वंशावली दी है । यह अभिलेख वि० सं० १०३४ वैशाख शुक्ल, प्रतिपदाका लिखा हुआ है । अत: 'जंबूदीवपणत्ति'का यही रचनाकाल सम्भव है।
श्री पंडित नाथूरामजी प्रेमीने इस ग्रन्थके रचनास्थल वारांनगरको राजस्थानके कोटा राज्यके अन्तर्गत माना है। और वारांकी भट्टारक गद्दीके आधारपर पद्मनन्दिका समय वि० सं०११०० अर्थात् ई० सन् १०४३ के लगभग सिद्ध किया है।
ज्ञानप्रबोध भाषाग्रन्थमें कून्दकून्दाचार्यकी एक कथा आयी है। उसमें कुन्दकुन्दको इसी वारापुर या बारांके धनी कुन्दश्रेष्ठी व कुन्दलताका पुत्र बतलाया है । कुन्दकुन्दका एक नाम पद्मनन्दि भी है । अवगत होता है कि ज्ञानप्रबोधके कर्ताने भ्रमवश 'जंबूदीवपण्णत्तिके' रचयिता पद्मनन्दिको कुन्दकुन्द समझकर वारांको उनका जन्मस्थान बताया है। शान्ति या शक्तिराजाको नरपतिरांपूज्य लिखा है। और साथ ही उसे 'बारानगरस्य प्रमः' कहा है। इस शान्ति या शक्तिको ही शक्तिकुमार मान लेना उचित प्रतीत है और इस आधारपर पद्मनन्दिका समय ई० सन् ९७७ के आस-पास भाना जा सकता है।
एक अन्य प्रमाण यह भी है कि सुधर्म स्वामीका नाम लोहार्य दिया है । यह लोहार्य अचारांगधारी लोहार्यसे भिन्न हैं। श्रवणबेलगोला बसतिमें भी गौत्तम गणधरके माक्षात् शिष्य लोहार्यको बताया है। यह अभिलेख शक संवत् १२२ ( ई० सन् ६००) है, अत: सूधर्मके स्थानपर लोहार्य के नाम आनेसे भी 'जबूदीवपणत्ति' ई० सन् दशवीं शतीकी रचना है। रचनाओं का परिचय ___ जंबूदीवपण्णत्तिमें २४२९ गाथाएँ हैं और तेरह उद्देश्य हैं । प्रत्येक उद्देश्यको पुष्पिकामें उस उद्देश्यके विषयका निर्देश पाया जाता है। उद्देश्यों के नाम निम्न प्रकार हैं१. जंगसाहित्य और इतिहारा, बम्बई, प्रथम संस्करण, पृ० २५४ । ११० : तीर्थंकर महावीर और उनकी आचार्यपरम्परा