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यशोधरने अमृतमतीको हँसीमें एक पुष्पसे मारा, जिससे वह मूच्छित हो गयी। शीतलोपचारके पश्चात् दयालु राजा कहने लगा
अनेन रन्ध्रेषु रसच्युता ते
कृष्णाननेनाद्य निपीडितायाः । दवन केनापि पर विदग्धे
निवारितः संनिहितोऽपि मृत्युः ।। इस रसीले, पर कृष्णमुख कमलने आज तुम्हें बड़ा कष्ट पहुँचाया । यह वहुत कुशल हुई, जो किसी पूर्वकर्मने तुम्हें आज मृत्युके मुखसे बचा लिया–पास आये हुए मरणको टाल दिया । ___व्यंजनावृत्ति द्वारा रानी अमृतमतीक दुराचारकी बात कह दी गयी है और यह भी व्यक्त कर दिया है कि आज रात्रिमें तुम्हारी मृत्यु इस खड्गसे हो गयी होती, पर किसी शुभोदयने मृत्युसे तुम्हारी रक्षा कर ली है।
चतुर्थसर्गमें वसन्त, पुष्पावचय एवं वनविहारका सरस चित्रण किया है। कविने यहाँ वसन्तश्रीमें मानव-भावनाओंका आरोप कर विभिन्न प्रकारकी संवेदनाओंकी अभिव्यक्ति की है। वनबिहारके समय महारानियोंकी लतासे तुलना की गयी है और उनमें लताके समस्त गुणोंका दर्शन कराया है । यथा
निकामतन्वयः प्रसवः सुगन्धय:
तदा दधानास्तरलप्रवालताम् । इतस्ततो जग्मुरिलापतेः स्त्रियो
लतास्तु न स्थावरतां वित्तत्यजुः ॥ बसन्तविहारके समय राजमििक्षयाँ लताके समान श्रीको धारण कर रही थीं । अन्तर इतना ही था कि लताएं अपने स्थान पर ही स्थित रहती हैं, पर महिषियाँ चंचल हो इधर-उधर लीला-विनोद कर रही थी । लताएँ कोमल और पतली होती हैं, वे महिलाएं भी पतली और क्षीण कटिबाली थीं। लताएँ पुष्पोंसे सुगन्धित रहती हैं, वे भी अनेक प्रकारके पुष्पोंके आभूषण पहने हुई थी, उन पुष्पोंकी गन्धसे सुगन्धित हो रही थी। लताएँ चंचल पत्तोंसे युक्त होती हैं, वे सुन्दरियाँ भी अपनी चंचलतासे युक्त थीं। ___ इस काव्यमें सबसे अधिक महत्त्व संगीतका बताया है। संगीतमें कितनी शक्ति होती है, यह रानी अमृसमसीकी घटनासे सिद्ध है। रानी अमृतमती अष्टभंग १. यशोधरचरित, धारवाड़ संस्करण, २१७१ । २. वही, ४।३।
१०२ : तीर्थकर महावीर और उनकी आचार्यपरम्परा