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________________ काव्यगुणोंको दृष्टि से यह यशोधरचरित समृद्ध काव्य है। रस, अलंकार एवं उक्ति-वैचित्र्यका समावेश है। कथावस्तुमें मर्मस्पर्शी स्थलोंकी योजना भी वर्तमान है। कवि सन्ध्याका चित्रण करता हुआ कहता है-“भवनमें मुगन्धित धूप जलायी जा रही हैं, इसकी गन्धसे समस्त नगर सुगन्धित हो उठा है । भवनोंने वातायनोंसे कबूतरोंके पंखका रंग लिये हा धाँके पिण्ड-के-पिण्ड निकलने लगे। उस समय प्रज्वलित रत्न-प्रदीपोंकी लाल-लाल कान्तिस धाति पिण्ड कूछ रक्त और कुछ पीत हो उठे। मनको प्रसन्न करने वाली सुगन्धिसे मस्त होकर लोग प्रफुल्लित चमेलीके पुष्पोंको भी तुच्छ दृष्टिसे देखने लगे।" यथा वहन बहिश्चारुगवाक्षरन्ध्र रामोदितान्तर्भवनस्तदानीम् । कपातपक्षच्छविरुज्जजम्मे निहारिकालागरुपिण्डधूमः ॥ आताम्रकम्रद्युतिरत्नदीप स्वस्मिन् जना. पाटलयमाजान् । व्याकोशमल्लीकुसूमानि दाम्ना मवाममस्तन्नवसौरभेण ।। भवनोंके वातायनोंसे निकलने वाले धूम्रमें कवि गृहदेवताकी सुगन्धित श्वासका आरोप करता हुआ कहता है आवर्तमानः परिमन्दवृत्त्या वातायनद्वारि चिरं विरेजे । कर्पूरधूलीसुरभि भस्वान् श्वासायितस्तद्गृह्देवता' हि ॥ भवनोंके वातायनोंपर पहुँचनेपर उनमेंसे निकलते हुए धूम्रके छोटे-छोटे कणोंसे उसकी और ही शोभा हो गयो । वह ऐसा प्रतीत होता था, मानों गृहदेवताकी सुगन्धित श्वास हो । ___ व्यंजनावृत्तिका भी कविने उपयोग किया है । कुब्जकके साथ दुराचार करने के अपराधमें महाराज यशोधर अमृतमतीको मार डालना चाहता था, पर स्त्रीबधको अपयशका कारण मानकर उसने उसे मारा नहीं। प्रातःकाल होनेपर १. यशोधरचरित, धारवाड़ संस्करण, २२३-२४ । २. वही, २।२५ । प्रबुद्धाचार्य एवं परम्परापोषकाचार्य : १०१
SR No.090509
Book TitleTirthankar Mahavira aur Unki Acharya Parampara Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherShantisagar Chhani Granthamala
Publication Year
Total Pages466
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size10 MB
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