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जो अज्जयमखुसोयो अंतेवासी वि पागहस्थिस्स ।
सो वित्तिसुत्तकत्ता जइवसहो मे वरं देऊ ॥८॥ अर्थात् जिन आर्यमक्षु और नागहस्तिने गुणधराचार्यके मुखकमलसे विनिर्गत कसायपाइको गाथाओंके समस्त अर्थको सम्यक्प्रकार ग्रहण किया, वे हमें वर प्रदान करें। चूणिसूत्ररचयिता यतिवृषभ आर्यमक्षुके शिष्य और नागस्तिके अन्तेवासी हैं।
इन गाथाओंसे निम्नलिखित तथ्य प्रसूस होते हैं१. आयमंक्षु और नागहस्तिकी समकालीनता २. कसायपाहुडको विझता ३. यतिवृषभके गुरुके रूपमें गया
यतिवृषभने अपने चूर्णिसूत्रोंमें आर्यमा और नागहस्तिको गुरुके रूपमें उल्लिखित नहीं किया है और न अन्य किसी आचार्यका हो अपनेको शिष्य बताया है । यद्यपि कुछ ऐसे स्थल उपलब्ध होते हैं, जिनसे उक्त दोनोंका गुरुत्व व्यक्त हो जाता है। उन्होंने "एल्थ वे उयएसा" कहकर दो उपदेशकोंकी सूचना दी है। ये उपदेशक अपने समयके दो महान ज्ञानो गुरु थे। जयधवलामें लिखा है___"पुणो तेसिं दोन्हं पि पादमले असीदिसदगाहाणं गुणहरमुहकमलविणिग्गयाणमत्वं सम्भं सोमण जयिवसहमहारएण पवयणवच्छलेण चुणिसुत्तं कयं ।"३
अर्थात् गुणधरके मुखकमलसे निकली हुई गाथाओंके अर्थको जिनके पादमूलमें सुन कर यतिवृषभने चूर्णिसूत्र रचा ।
इन्द्रनन्दिके श्रुतावतारमें आयमच और नागहस्तिको गुणपराचार्यका शिष्य बताया गया है। अतएव इन दोनोंके गुरु गुणधराचार्य हैं और शिष्य यतिवृषभ
एवं गाथासूत्राणि पंचदशमहाधिकाराणि ।
प्रविरच्य व्याचल्यो स नागहस्त्यार्यमंक्षुभ्याम् ॥' अर्थात् गुणधराचार्यने कसायपाहुइको सूत्रगाथाओंको रचकर स्वयं उनको व्याख्या करके आर्यमंक्षु और नागहस्सिको पढ़ाया ।
जयषयलाके एक अन्य उल्लेखसे अवगत होता है कि आचार्यपरम्परासे प्राप्त गायाओंको शिक्षा गुणधरने आर्यमंक्षु और नागहस्तिको दी थी१. जयषवलाटीका, मंगलाचरण पच ७-८ । २. कसायपाहुन, जमघवला टीका, भाग १, पु.८८ । ३. श्रुतावतार, पद्य १५४ ।
संपर और सारस्वताचार्य : ७३