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बन्धके दो भेद हैं--एकैकोत्तर प्रकृतिबन्ध और अव्वोगाढ़ोत्तरप्रकृतिबन्ध । एककोत्तरप्रकृतिबन्धके २४ अनुयोगद्वार हैं। उनमेसे जो समुत्कीर्तन नामक अधिकार है उसमेंसे प्रकृतिसमुत्कीर्तन, स्थान-समुत्कीर्तन और तीन महादंडक निस्सृत हैं। तेईसवें भावानुगमसे भावानुगम निकला है। अन्वीगाढ़ उत्तरप्रकृतिवन्धके दा भेद हैं-भुजगारबन्ध और प्रकृतिस्थानबन्ध । प्रकृतिस्थानबन्धके आठ अनुयोगद्वार हैं-सत्प्ररूपणा, द्रव्यप्रमाणानुगम, क्षेत्रानुगम, स्पर्शानुगम, कालानुगम, अन्तरानुगम, भावानुगम और अल्पबहुत्वानुगम । इन आठ अनुयोगद्वारों से छ: अनुयोग-द्वार निकले हैं-सत्प्ररूपणा,क्षेत्रप्ररूपणा, स्पर्शनप्ररूपणा, अन्तरप्ररूपणा और अल्पबहुत्वप्ररूपणा | ये छ: और बन्धक अधिकारके ग्यारह अधिकारोंमेंसे निस्सुत द्रव्यप्रमाणानुगम तथा तेईसवें अधिकारसे निस्सृत भावानुगम ये सब मिलकर जीवस्थानके आठ अनुयोगद्वार हैं। इस विवेचनसे ज्ञात होता है कि आचार्य पुष्पदन्तने 'एत्ता' इत्यादि सूत्र उक्त आधारको ग्रहण कर ही कहा है।
उक्त समस्त विमर्शके अध्ययनसे निम्नलिखित निष्कर्ष उपस्थित होते हैं१. षट्खंडागमका आरंभ आचार्य पुष्पदन्तने किया है। २. सत्प्ररूपणाके सूत्रोंके साथ उन्होंने षखंडागमकी कोई रूपरेखा भी भूत
बलिके निकट पहुंचायो होगी। ३. पुष्पदन्तने अपनी रचना जिनपालितको पढ़ायी और तदनन्तर
अपनेको अल्पायु समझकर गुरुभाई भूतबलिको अवशिष्ट कार्यको पूर्ण
करनेके लिये प्रेरित किया होगा। ४. पुष्पदन्त महाकर्मप्रकृतिमाभृतके अच्छे ज्ञाता एवं उसके व्याख्याताके
रूप में प्रसिद्ध रहे हैं। यपि सूत्रोंके रचयिताओंका नाम नहीं मिलता है; पर धवलाटीकाके आधारपर सत्प्ररूपणाके सूत्रोंके रचयिता पुष्प
दन्त है। ५. पुष्पदन्तने अनुयोगद्वार और प्ररूपणाओंके विस्तारको अनुभव कर ही
सूत्रोंकी रचना प्रारम्भ को होगी। भूतबलि और उनकी रचना __ पुष्पदन्तके नामके साथ भूतबलिका भी नाम आता है। दोनोंने एक साथ १. एतो इमेसि पोइसण्हं जीवसमासाणं मग्गणदाए तत्य इमाणि चोड्स व टागाणि __णायव्याणि भवति ।-पट्स० १०२ २. षट्सण्डागम, षषकाटीका, प्रथम पुस्तक, पृ० १२३-१३० ।
श्रुतघर और सारस्वताचार्य : ५५