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साथ जीव किस आयुको भोगता है और परभवकी किस आयुको बांधता है, यह . सब विस्तारपूर्वक आया है। इसी प्रकरणके अन्तमें ग्रन्थकारने यह कहा है कि इन्द्रनन्दिगुरुके पासमें श्रवण करके कनकनन्दिने सत्वस्थानका निरूपण किया |
त्रिचूलिफा अधिकारमें तीन चूलिकाएँ हैं-१. नवप्रश्नचूलिका, २. पंचभागहारचूलिका और ३. दशकरणचूलिका । पहली नवप्रश्नचूलिकामें ९ प्रश्नोंका समाधान किया है
१. उदयव्युच्छित्तिके पहले बन्धन्युच्छित्तिको प्रकृतिसंख्या। २. उदयव्युच्छित्तिके पोछे बन्धयुच्छित्तिकी प्रकृतिसंख्या । ३. उदयव्युच्छिनि बन्धवस्तितिको प्रकृति माया । ४. जिनका अपना उदय होनेपर बन्ध हो, ऐसी प्रकृतियाँ । ५. जिनका अन्य प्रकृतिका उदयपर बन्ध हो, ऐसी प्रकृतियों । ६. जिनका अपना तथा अन्य प्रकृतियोंके उदय होनेपर बन्ध हो, ऐसो
प्रकृतिसंख्या। ७. निरन्तरबन्धप्रकृतियाँ। ८. सान्तरबन्धप्रकृतियाँ । ९. निरन्तर, सान्तरबन्धप्रकृतियाँ । उपयुक्त ९ प्रश्नोंका इस अधिकारमें उत्तर दिया गया है।
पंचभागहारचूलिकामें उद्वेलन, विध्यात, अधःप्रवृत्त, गुणसंक्रम और सर्वसंक्रम इन पाँच भागहारोंका कथन आया है। दशकरणचूलिकामें बन्ध, उत्कर्षण, अपकर्षण, संक्रमण, उदोरणा, सत्ता, उदय, उपशम, निप्ति और निकाचना इन दश करणोंका स्वरूप कहा गया है । और बतलाया है कि कौन करण किस गुणस्थान तक होता है । करणनाम क्रिया का है। कर्मों में ये दश क्रियायें होती हैं।
बन्धोदयसत्वयुक्तस्थानसमुत्कीर्तनमें एकजीवके एकसमयमें कितनी प्रकृतियोंका बन्ध, उदय अथवा सत्व सम्भव है, का कथन किया है । इस अधिकारमें आठों मूलकों को लेकर और पुनः प्रत्येक कर्मकी उत्तरप्रकृतियोंको लेकर बन्धस्थानों, उदयस्थानों और सत्वस्थानोंका निर्देश किया गया है। यह अधिकार गुणस्थानक्रमसे विचार करने के कारण पर्याप्त विस्तृत है 1
प्रत्यमाधिकारमें कर्मबन्धके कारणोंका कथन है। मूल कारण चार हैं--- १. मिथ्यात्व, २. अविरति, ३. कषाय और ४. योग । इनके भेद क्रमसे ५, १२, २५ और १५ होते हैं । गुणस्थानों में इन्हीं मूल और उत्तर प्रत्ययोंका कथन इस अधिकारमें किया गया है तथा प्रत्येक गुणस्थानके बन्धके प्रत्यय बतलाये गये हैं। ४२६ : सीकर महावीर और उनकी आचार्य-परम्परा