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इस प्रसंग में क्षणिककान्तवादी बुद्धका खण्डन किया है। वैनायिक मिथ्यात्वके निरसनमें यक्ष, नाग, दुर्गा, चण्डिका आदिके पूजनेका निषेध किया है। संशयमिथ्यात्वका निरूपण करते हुए उदाहरण हेतु श्वेताम्बर मतका निरसन किया गया है । वेताम्बर सम्प्रदाय स्त्रीमुक्ति, केवली कवलाहार और साधुओंका वस्त्र पात्र रखना इन तीनों बातोंकी आलोचना को गयी है । स्वेताम्बर अपने साधुयोंको स्थविरकल्पी बतलाते हैं । ग्रन्थकार के मतसे वे स्थविर नहीं, बल्कि गृहस्थकल्पी हैं । जिनकरूप और स्थविरकल्पका विवेचन विस्तारपूर्वक किया है। इस सन्दर्भ में बताया है
दुद्धरतवस्स भग्गा परिसहविसएहि पीडिया जेय । जो गिरूप्पो लोए स थविरकप्पो कओ तेहि ॥
अर्थात् परोष से पीडित और दुर्द्धर तपसे भीत जनोने गृहस्थकल्पको स्थविर कल्प बना दिया है । १३७ बी गाथासे श्वेताम्बर मतकी उत्पत्तिकी कथा दी गयी है। इस कथामें बताया है कि सौराष्ट्र देशकी बलभी नगरीमें वि० सं० १३६ में श्वेताम्बर संघकी उत्पत्ति हुई । दर्शनसार में भी श्वेताम्बर मतकी उत्पत्तिका यही समय अंकित किया गया है।
अज्ञान मिथ्यात्वका कथन करते हुए लिखा है कि भगवान पार्श्वनाथके तीर्थकल्पमें मस्करीपूरण नामक ऋषि हुआ । यह भगवान महावीरके समवचरण में गया, किन्तु उसके जानेपर भगवानकी वाणो नहीं खिरो । चह रुष्ट होकर समवशरणसे चला आया और कहने लगा - में ग्यारह अंगोंका धारी हूँ, फिर भी मेरे जाने पर तीर्थंकर महावीरको दिव्यध्वनि प्रवाहित नहीं हुई और गौतमके आने पर दिव्यध्वनि होने लगी । गौतमने अभी दीक्षा ली । वह तो वेदवादी पण्डित है । वह जिनोक्त श्रुतको क्या जाने । अतः उसने अनसे लोगोंके मध्य मोक्षका उपदेश दिया
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अण्णाणाओ मोक्खं एवं लोयाण पयडमाणो देवो ण अस्थि कोई सुण्णं झाएह इच्छाएर ॥
अर्थात् अज्ञानसे ही मोक्ष होता है। इसके लिये ध्यान, संयम, तप, सज्ज्ञान की आवश्यकता नहीं । इस प्रकार पाँचों मिथ्यात्वों को समीक्षा करनेके पश्चात् चार्वाक के द्वारा मान्य दर्शनको समीक्षा की है । चार्वाक चैतन्यको भूतोंका विकारमात्र मानता है । ग्रन्थकारने इसे कोलिकाचार्यका मस कहा है
१. भावसंग्रह, गाया १३३ ।
२. भावसंग्रह, गाया १६४ १
श्रुतघर और सारस्वताचार्य : ३७३