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धीयविधानात् । नौलादयः संति येषां ते नीलादयः कंबलाढ्य इति गुणवचनेभ्यो मत्वावस्थाभावप्रसिरिति पर, उपचारतोपचारादिति कमः ।" इस प्रकार पत्रका लक्षण लिखकर अन्य मतमतान्तरोंकी विस्तारपूर्वक समीक्षा की गयी है। वाद-विवादके लिए प्रतिज्ञा और हेतु इन दो अवयवोंको ही अनुमानके अवयव माने गये हैं। नैयायिक, वैशेषिक, मीमांसक, कपिल, सुगत आदिके मतोंकी समीक्षा करते हुए स्फोटवादका भी निरसन किया है। बीच-बीच में प्राचीन आचार्योके श्लोकोंको उद्धृत किया गया है। इस प्रकार इस लघुकाय ग्रन्थमें वाद-विषयक चर्चाका समावेश किया है । ४. सत्यशासनपरीक्षा
सत्यशासनपरोक्षाको महत्ताके सम्बन्धमें पंडित महेन्द्रकुमारजो न्यायाचार्यने लिखा है-"तग्रन्थोंके अभ्यासी विद्यानन्दके अतुल पाण्डित्य, तलस्पर्शी विवेचन, सूक्ष्मता तथा गहराईके साथ किये जानेवाले पदार्थोके स्पष्टीकरण एवं प्रसन्न भाषामें गूंथे गये युक्तिजालसे परिचित होंगे। उनके प्रमाणपरीक्षा, पत्रपरीक्षा और आप्तपरीक्षा प्रकरण अपने-अपने विषयके बेजोड़ निबन्ध हैं। ये ही निबन्ध तथा विद्यानन्दके अन्य ग्रन्थ आगे बने हुए समस्त दिगम्बर, श्वे. ताम्बर न्यायग्रन्थोके आधारभूत हैं । इनके ही विचार तथा शब्द उत्तरकालोन दिगम्बर, श्वेताम्बर न्यायग्रन्थोंपर अपनी अमिट छाप लगाये हुए हैं। यदि जैन न्यायके कोषागारसे विद्यानन्दके ग्रन्थोंको अलग कर दिया जाय, तो वह एकदम निष्प्रभ-सा हो जायगा | उनको यह सत्यशासनपरीक्षा ऐसा एक तेजोमय रत्न हैं, जिससे जैन न्यायका आकाश दमदमा उठेगा । यद्यपि इसमें आये हुए पदार्थ फुटकर रूपसे उनके अष्टसहस्री आदि ग्रन्थों में खोजे जा सकते हैं, पर इतना सुन्दर और व्यवस्थित तथा अनेक नये प्रमेयोंका सुरुचिपूर्ण संकलन, जिसे स्वयं विद्यानन्दने ही किया है, अन्यत्र मिलना असम्भव है।"
इस प्रन्थमें निम्नलिखित शासनोंको परीक्षा की गयी है१. पुरुषाद्वैत-शासन-परोक्षा। २. शब्दाद्वैत-शासन परीक्षा | ३. विज्ञानाद्वत्त-शासन-परीक्षा। ४. चित्राद्वेत-शासन-परीक्षा।
१. भारतीय ज्ञानपीठ कात्री द्वाराडा गोकुलचन्द्र जैनके सम्पायकत्वमें सन् १९६४ ई०
में प्रकाशित । २. अनेकान्त, वर्ष ६, किरण ११ ॥
युतधर और सारस्वताचार्य : ३५७