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रचनाके समय तक विद्यानन्दको ऐसी ख्याति प्राप्त नहीं हुई थी, जिससे पुगणकार उनका स्मरण करता ।
कतिपय निहा नोंका अभियान है कि विद्यानन्दका कार्यक्षेत्र दक्षिणमें गंगवंशका गंगवाड़ो प्रदेश है और विद्यानन्दकी स्थिति गंगनरेश शिवमार द्वितीय तथा राममल्ल सत्यवाक्य प्रथम (ई० सन् ८१०-८१६)के समयमै रही है। विद्यानन्दने प्रायः अपनी समस्त कृतियोंको रचना गंगनरेशोंके राज्यकालमें' की है । अतः सम्भव है कि पुन्नाटवंशो जिनसेनने इनका स्मरण न किया हो ।
जैनन्यायके उद्भट विद्वान् डॉ. पं० दरबारीलाल कोठियाने विद्यानन्दके जीवन और समय पर विशेष विचार किया है। उन्होंने निष्कर्ष निकालते हए लिस्त्रा है
"विद्यानन्द गङ्गनरेश शिवमार द्वितीय (ई० सन् ८१०) और राचल्ल सत्य. वाक्य प्रथम (ई० सन् ८१६) के समकालीन हैं। और इन्होंने अपनी कृतियाँ प्रायः इन्हींके राज्य-समयमें बनाई हैं, विद्यानन्दमहोदय और तत्त्वार्थश्लोकवात्तिकको शिवमार द्वितीयके और आप्तपरीक्षा, प्रमाणपरीक्षा तथा युक्त्यनुशासनालकृति ये तीन कृतियाँ राचमल्ल सत्यवाक्य प्रथम ई० ८१६-८३०) के राज्यकालमें बनी जान पड़ती हैं। अष्टसहस्त्री, श्लोकवात्तिकके बादकी और आप्तपरीक्षा आदिके पूर्वकी-रचना है-करीब ई०८१०-८१५ में रची गयी प्रतीत होती है तथा पत्रपरीक्षा, श्रीपुरपाश्वनाथस्तोत्र और सत्यशासनपरीक्षा ये तीन रचनाएं ई० सन् ८३०-८४० में रची ज्ञात होती हैं। इससे भी आचार्य विद्यानन्दका समय ई० सन् ७७५-८४० ई० प्रमाणित होता है ।"२
डॉ० कोठिया द्वारा निर्धारित समय मी उपर्युक्त समयके समकक्ष है। अतएव आचार्य विद्यानन्दका समय ई० सन् की नवम शती है । रचनाएँ
आचार्य विद्यानन्दकी रचनाओंको दो वर्गों में विभक्त किया जा सकता है-१. स्वतन्त्र ग्रन्थ और २. टीका ग्रन्थ । स्वतन्त्र ग्रन्य
इनको स्वतन्त्र रचनाएं निम्नलिखित हैं१. आप्तपरीक्षा स्वोपज्ञवृत्तिसहित
१. श्रीपुरपार्श्वनाथस्तोत्र, वीर सेवा मन्दिर सरसावा, सन् १९४९ ई०, प्रस्तावना,
पृ० १२ । २. आप्तपरीक्षा, वीरसेबामन्दिर संस्करण; सन् १९४९, १० ५३ ।
३५२ : तीर्थकर महावीर और उनकी प्राचार्य-परम्परा