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समृद्ध करने के पश्चात् वह दर्शनविशुद्धि आदि सोलह कारणभावनाओंका चिंतन कर तीर्थंकरप्रकृतिका बन्ध करता है। अन्तमें प्रायोपगमन सन्यास धारण कर सर्वार्थसिद्धि विमानमें उत्पन्न होता है। ____ द्वादश पर्वमें अहमिन्द्रका जीव ऋषभदेवके रूप में नाभिराय और मरुदेवीके यहाँ जन्म धारण करता है । इस पर्वमें मरुदेवीकी गर्भावस्था और देवियोंको की गयी सेवांका वर्णन किया है। ___त्रयोदय पर्वमें आदितीर्थंकर ऋषभदेवका इन्द्र द्वारा जन्माभिषेक उत्सवके किये जाने का निरूपण आया है। उनका सुमेरु पर्वतपर एक हजार आठ कलशोंके द्वारा अभिषेक सम्पन्न होता है। चतुर्दश पर्वमें इन्द्राणी बालकको वस्त्राभूषणोंसे सुसज्जित कर माताको सौंप देसी है 1 इन्द्र ताण्डवनृत्य कर उनका ऋषभदेव नाम रखता है।
पञ्चदश पर्वमें ऋषभदेवके शारीरिक सौन्दर्य और उनके एक हजार आठ शुभ लक्षणोंका वर्णन आया है। महाराज नाभिराय युवक होनेपर पुत्रसे विवाह करनेका अनुरोध करते हैं। फलस्वरूप कच्छ और महाकच्छकी बहनें यशस्वती और सुनन्दाके साथ ऋषभदेवका विवाह सम्पत्र होता है।
षोड़शपर्वके अनुसार यशस्वतीके उदरसे भरतचक्रवर्तीका जन्म होता है और सुनन्दाके उदरसे बाहरलोका । ऋषभदेवका यशस्वतीसे अन्य ९८ पूत्र और ब्राह्मी नामक कन्याको प्राप्ति होती है । सुनन्दासे बाहुवलीके अतिरिक्त मुन्दरी नामक कन्यारत्न भी उपलब्ध होती है । ऋषभदेव प्रजाको असि, मषि, कृषि, बाणिज्य, सेवा और शिल्प इन षट् आजाविकोपयोगी कर्मोको शिक्षा देते हैं । क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र इन तीन वर्णो को व्यवस्था करते हैं ।
सप्तदश पर्वमें ऋषभदेवको विरक्ति प्राप्त करनेके लिए एक मार्मिक घटना घटित होती है। नीलाञ्जना नामक नर्तको अचानक विलीन हो जाती है। ऋषभदेव इस अघटित घटनाको देखते ही विरक्त हो जाते हैं । स्वर्गसे लौकान्तिकदेव आकर उनके वैराग्यको पुष्टि करते हैं । वे अयोध्या के पट्टपर भरतका राज्याभिषेक कर अन्य पुत्रोंको यथायोग्य राज्य देते हैं । सिद्धार्थवनमें जाकर परिग्रहका त्यागकर चैत्र कृष्णा नवमोके दिन ऋषभदेव दीक्षा ग्रहण कर लेते हैं । इनके साथ चार हजार अन्य राजा भी दीक्षित हो जाते हैं । ____ अष्टदश पर्वमें बताया गया है कि ऋषभदेव छः माहका योग लेकर शिलापट्रपर आसीन हो जाते है। दीक्षा धारण करते ही मनःपयंयज्ञान उत्पन्न हो जाता है । साथमें दीक्षित हुए राजा भ्रष्ट हो जाते हैं और विभिन्न मतोंका
भ्रुतपर और सारस्वताचार्य : ३४५