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ध्यायं ध्यायं त्वदुपगमनं शून्यचिन्तानुकण्ठी,
भूयोभूयः स्वयमपि कृतां मूर्छनां विस्मरन्ती' ।। आम्रकूट पर्वतके शिखर पर मेघके पहुंचने पर कवि पर्वत-शोभाका वर्णन करता हुआ कहता है
कृष्णाहिः किं बलयिततनुः मध्यमस्याधिशेते; किं वा नीलोत्पलविरचितं शेखरं भूभृतः स्यात् । इत्याशङ्कां जनयति पुरा मुग्धावद्याधरीणां,
वाय्यारूढे शिखरमचल: स्निग्धवेणीसवर्णे ॥ समस्यापूतिमें कविने सर्गथा नवीन भावयोजना की है। मार्गवर्णन और बसुन्धराको विरहावस्थाका वर्णन मेघदूतके समान ही है। परन्तु इसका संदेश मेघदतसे भिन्न है। शम्बर पाचर्णनाथके धैर्य, सौजन्य, सहिष्णुता और अपार शक्तिसे प्रभावित होकर स्वयं वैरभावका त्याग कर उनको शरणमें पहुंचता है और पश्चात्ताप करता हुआ अपने अपराधको क्षमायाचना करता है । कविने काव्यके बीचमें “पापापाये प्रथममुदितं कारणं भक्तिरेव" जैसी सूक्तियोंकी भी योजना की है । इस काव्यमें कुल ३६४ मन्दाक्रान्ता पद्य हैं। २. आदिपुराण
यह आकर ग्रन्थ है। पुराण होते हुए भी इसमें इतिहास, भूगोल, संस्कृति समाज, राजनीति और अर्थशास्त्र आदि वषय भी समाविष्ट हैं। जिनसेनने पुराणके लिए आठ वर्ण्य विषय बतलाये हैं।
१. लोक-लोक-संस्थान, लोक-आकृति, क्षेत्रफल, भेद एवं उर्घा, मध्य और अधोलोकका वर्णन, क्षेत्र, ढोप, पर्वत, नदी आदिका वर्णन ।
२. देश--जनपदोंका चित्रण । ३. नगर-अयोध्या, बाराणसो प्रभृति नगरियोंका चित्रण । ४. राज्य---राज्योंकी समृद्धिका चित्रण । ५, तीर्थ - धर्मप्रवृत्ति एवं तीर्थभूमियोंका निरूपण । ६. दान-तप-तप-दानकी फलोत्पादक कथाओंका वर्णन । ७, गति-चतर्गतिके दुःखोंका वर्णन 1
८. फल-पुण्य-पापके फलके साथ मोक्षप्राप्तिका निरूपण । १. पााम्युदय ३।३९ । २. वहीं १७ । ३. यह भारतीय ज्ञानपीठ द्वारा प्रकाशित है।
श्रुतधर और सारस्वतारार्य : ३४१