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इन्हीं सिद्धान्तोंपर से घाता - सिद्धान्त निम्न प्रकार बनाया है
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घातांक - सिद्धान्तोंके उदाहरण धवलाके फुटकर गणित में मिलते हैं ।
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१. प्रसादगुण २. समाहारशकि ३. तर्क या न्यायशैली ४. पाठकशैली ५. सर्जकशैली
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श्रेणोव्यवहार, अर्द्धच्छेद, व्यास, त्रिज्या, चतुरस्र, त्रिकोण एवं अनेक प्रकारके बहुभुज क्षेत्रोंके क्षेत्रफलानयनको विधि विस्तारपूर्वक वर्णित है ! गणितानुयोगका दुष्टिसे वीरसेनाचार्यका ज्ञान असाधारण था। उन्होंने वर्गांक, घातांक, वर्गवर्गाक, घनांक, ऋण एवं घन करणियोंके गणित विस्तारपूर्वक वर्णित किये हैं। कोण, रेखा, समकोण, अधिकोण, न्यूनकोण, समतल, घनपरिमाण, व्यवच्छेदक सूचीछंद, वक्ररेखा आदिको गणितविधियाँ भी वर्णित हैं।
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घवला और जयधवला टीकाओं की शैलीमें निम्नलिखित पाँच गुण समाहित हैं-
३३२ : तीर्थंकर महावीर और उनकी आचार्य -परम्परा
१. प्रसादगुण
विषय-विवेचन में आचार्यने पद और वाक्योंका अर्थ तो स्पष्ट किया ही है, पर साथ ही तत्सम्बन्धी विषयको उपस्थित कर सूत्रोंका इतना स्पष्टीकरण किया है, जिससे सूत्रके समान्य अर्थ के साथ उसके विशेष हृद्यको भी अवगत करने में बुद्धिको व्यायाम नहीं करना पड़ता है । शंका-समाधानद्वारा विषयनिरूपण में सरलता, स्वच्छता और आडम्बर होनता परिलक्षित होती है । इस टोकाका धबलानाम भी विषय प्रतिपादनकी स्वच्छता का द्योतक है यथा" "एत्ता' एतस्मादित्यर्थः । कस्मात् प्रमाणात् । कुत एतदवगम्यते ? प्रमाणस्य जीवस्थानस्याप्रमाणादवतारविरोधात् । नाजलात्मक हिमवतो निपतञ्जलात्मकगङ्गया व्यभिचारः, अवयविनोऽवयस्यात्र वियोगापायस्य विवक्षितत्वात् । नावय१. छटुवग्गस्स उर्वारि सत्तमवम्गस्स दो त्ति वुझे बत्थवत्ती न जादेत्ति ।
- धबला, पुस्तक ३, पृ० २५३ ।