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तृतीय प्रस्तावमें अनुमान के अवयव, साध्य साधनका लक्षण, साध्याभासका लक्षण, सदसदेकान्त में साध्यप्रयोगकी असम्भवता सामान्य विशेषात्मक वस्तुकी साध्यता एवं अनेकान्तात्मक वस्तुमें दिये जानेवाले संशयादि आठ दोषोंकी समीक्षा अति है। चतुर्थं प्रस्तावमें हेतुसम्बन्धी विचार आया है । इसमें त्रिरूप हेतुका खण्डन करके अन्यथानुपपत्तिरूप हेतुलक्षणका समर्थन किया गया है। हेतुके उपलब्धि और अनुलब्धिरूप भेदों का विवेचन कर पूर्वघर, उत्तरचर और सहचर हेतुसम्बन्धी विचार किया गया है। इस प्रस्ताव में विभिन्न मतोंकी समीक्षा पूर्वक हेतुका स्वरूप निर्धारित किया है।
पञ्चम प्रस्ताव में असिद्ध, विरुद्धादि हेत्वाभासोंका निरूपण, सर्वथा एकान्त में सत्वहेतुकी विरुद्धता, सहोपलम्भनियम, हेतुकी विरुद्धता, विरुद्धाव्यभिचारीका विरुद्ध में अन्तर्भाव, अज्ञातहेतुका अकिञ्चित्कर में अन्तर्भाव आदि हेत्वाभासविषयक प्ररूपण आया है तथा इसमें अन्तर्व्याप्तिका भी समर्थन किया है।
षष्ट प्रस्ताव में वादका लक्षण, जय-पराजयव्यवस्थाका स्वरूप, जातिका लक्षण, दध्युष्टत्वादिके अभेदप्रसंगका सयुक्तिक उत्तर उत्पादादित्रयात्मकत्व समर्थन, सर्वथा नित्य सिद्ध करने में सत्व हेतुका असिद्धत्वादि निरूपण आया है। इस प्रस्ताव में शून्यवाग, संभाष विज्ञानदाद क्षणभंगवाद, असत्कार्यवाद आदिको भी समीक्षा की गयी है ।
सप्तम प्रस्ताव प्रवचनका लक्षण, सर्वज्ञसिद्धि, अपौरुषेयत्वका निरसन, तत्त्वज्ञानसहित चारित्रको मोक्षहेतुता आदि विषयोंकर विवेचन आया है ।
अष्टम प्रस्ताव में सप्तभंगीके निरूपणके साथ नेगम, संग्रह, व्यवहार, ऋजुसूत्र, शब्द, समभिरूढ़ और एवम्भूत इन सात नयोंका कथन आया है ।
नवम प्रस्ताव में प्रमाण, नय और निक्षेपका उपसंहार किया गया है। ४. सिद्धिविनिश्चय सवृत्ति'
सिद्धिविनिश्चयमें १२ प्रस्ताव हैं । इनमें प्रमाण, नय और निक्षेपका विवेचन है | प्रथम प्रस्ताव प्रत्यक्ष- सिद्धि है। इसमें प्रमाणका सामान्य लक्षण, प्रमाणका फल, बाह्यार्थको सिद्धि, व्यवसायात्मक विकल्पको प्रमाणता और विशदता, चित्रज्ञानकी तरह विचित्र बाह्य पदार्थो को सिद्धि, निर्विकल्पक प्रत्यक्षका निरास,
१. सिद्धिविनिश्चय अनन्तवीर्यकी टीका सहित, भारतीय ज्ञानपीठ काशी संस्करण । ३१२ : तीर्थकर महावीर और उनकी माचार्य-परम्परा