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निर्मित स्तम्भों पर महेन्द्रनीलमणिके कलश तथा ऊपरी भाग पद्मरागमणिसे खचित था और रजतके कलश सुशोभित थे। ऊपरी भागमें मणियोंके पक्षी बने थे, जिनके मुखस गिरते हुए मुक्ताफल चित्रित किये गये थे । पालको का मध्यभाग मुक्तामणियोसे व्याप्त था । ऊपर लगी हुई पताकाएं लहरा रही थीं। उठानेके दण्डोंमें नाना प्रकारके रत्न जटित थे।
स्पष्ट है कि कल्पनाके ऐश्वर्य के साथ-साथ कविका सूक्ष्म निरीक्षण भी अभिनन्दनीय है। पालकोंके स्तम्भों पर ऊपर और नीचे दोनों और कलशोंका विवेचन, कविकी दष्टिकी जागरूकताका परिचायक है । यद्यपि इस प्रकारके वर्णन कान्यकी रसपेशलताको वृद्धि नहीं करते, तो भी वर्णनकी मंजुल छटा विकीर्ण कर पाठकोंको चमत्कृत करते हैं। __ कल्पना और वर्णनोंके स्रोत कविने बाल्मीकि और अश्वघोषसे ग्रहण किय हैं। वाल्मीकि रामायण में जिस प्रकार शर्पणखा राम-लक्ष्मणसे पति बननेकी प्रार्थना करता है, उसी प्रकार पक्षिणी इस काव्यमें वराङ्गसे । निश्चयतः इस कल्पनाका स्रोत बाल्मीकि रामायण है। ___ वर्णन, धाभिक, तथ्य और काव्य चमत्कारोंके रहने पर भी कविने रसाभिव्यक्तिमें पुरा कौशल प्रदर्शित किया है । वरांड और उसकी नवोढा पत्नियोंकी केलि क्रीड़ाओके चित्र में संभोग-शृंगारका सजीव रूप प्रस्तुत किया गया। है। कविने त्रयोदश सर्गमें वीभत्स रसका बहुत ही सुन्दर निरूपण किया है। पुलिन्दका वस्तीमें जन कुमार वराङ्ग पहुँचा, तो उसे वहीं पुलिन्दराजके झोपड़ेके चारों ओर हाथियोंके दाँतोंकी बाढ़, मृगोंको अस्थियोंके ढ़ेर, मांस और रक्तसे प्लावित शवों द्वारा उसका अच्छादन, बैठनेके मण्डपमें चर्वी, औते, नसनाड़ियों के विस्तार तथा दुर्गन्ध पूर्ण वातावरण मिला। कविने यहां पुलिन्दराजके झोपड़ेको वीभत्सताका मूर्तरूप चित्रित किया है। पुलिन्दके भोषण कारागारका चित्रण भी कम वीभत्सता उत्पन्न नहीं करता है।
कविने चतुर्दश सगंमें वीररसका पूर्ण चित्रण किया है। पुलिन्दराजके साथ उसके सम्पन्न हुए युद्धका समस्त विभाब और अनुभावों सहित निरूपण किया गया है।
इस काव्यमें वसन्ततिलका, उपजाति, पुष्पित्ताया, महर्षिणी, मालिनी, १. वराङ्गचरित, सर्ग २, पद्य ८९.५४ । २. वहीं सर्ग १३ श्लोक ५०-५१ । ३. वहीं सर्ग १३ श्लोक ५६-५७ । ४, वही सर्ग १६ श्लोक ३५-४६ ।
श्रुतघर और सारस्वताचार्य : २९९