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रचनाएँ और प्रतिभा
जटासिनन्दिको वराङ्गचरितके अतिरिक्त अन्य कोई रचना उपलब्ध नहीं है । पर वराङ्गचरितको प्रौढ़ता और उसमें प्रसंगवश आये हुये सैद्धान्तिक वर्णना के अवलोकनसे यह विश्वास नहीं होता कि इस कविको यही एक रचना रही होगी। हमारे इस अनुमानकी पूष्टि योगेन्द्र रचित 'अमृताशीति में जटाचार्यके नामसे आये हुए निम्नलिखित उद्धरणसे भी होती है'जटासिंहनन्धाचार्यवृत्तम्
ताबक्रियाः प्रवर्तन्ते यावदद्वैतस्य गोचरं ।
अद्वये निष्फले प्राप्ते निष्क्रियस्य कुतः क्रिया॥ यह पद्य वराङ्गचरितमें नहीं मिलता है। जटाचार्य के नामसे उल्लिखित होने के कारण, जिसमें यह पद्य रहा है, ऐसी अन्य कोई रचना होनी चाहिए ।
कदिने वराङ्गचरितको चतुर्वर्ग समन्वित, सरल शब्द-अर्थ गुम्फित धर्मकथा कहा है
सर्वज्ञभाषितमहानदधीतबुद्धिः
स्पष्टेन्द्रियः स्थिरमतिमितबाङ्मनोशः । मृष्टाक्षरो जितसभः प्रगृहीतवाक्यो ।
वक्तुं कथां प्रभवति प्रतिभादियुक्तः ।। इति धर्मकथोद्देशे चतुर्वर्गसमन्विते ।
स्फुटशब्दार्थसंदर्भ वराङ्गचरिताश्रिते ।। जनपद-नगर-नृपति-नृपपत्नीवर्णनो नाम प्रथमः सर्ग: 1 वराङ्गचरित एक पौराणिक महाकाव्य है। इसमें पुराणतत्त्व और काव्यतत्त्वका मिश्रण है । इसकी कथावस्तुके नायक २२वें तीर्थंकर नेमिनाथ तथा श्रीकृष्णके समकालिक वराङ्ग है। नायकमें धीरोदात्तके सभी गुण विद्यमान हैं। इस पौराणिक महाकाव्यमें नगर, ऋतु, उत्सव, कोड़ा, रति विप्रलम्भ, विवाह, जन्म, राज्याभिषेक, युद्ध, बिजय आदिका वर्णन महाकाव्यके समान ही है । इसमें ३१ सर्ग हैं। पर लक्षण-ग्रन्थोंके अनुसार महाकाव्यमें ३० सर्गसे अधिक नहीं होने चाहिए। नायक वराङ्गमें धर्मनिष्ठा, सदाचार, कर्तव्यपरायणता,
१. अमृताशीति, माणिकचन्द्र दिगम्बर जैन ग्रन्थमाला, पु० २१, पृ० ५८, पद्म ६७ २. घराङ्गचरित, मा० दि० जन मन्यमाला, १९३८ ।
श्रुतधर और सारस्वताचार्य : २९५