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२. स्थलगता, ३. मायागता, ४. रूपगता और ५. आकाशगता । जलगता में जलमें गमन तथा जलस्तम्भन के कारणभूत मन्त्र-तन्त्र तपश्चर्या आदिका वर्णन हैं । स्थलगतामें पृथ्वीके भीतरसे गमन करनेके कारणभूत मन्त्र-तन्त्र और तपश्चर्या तथा वास्तुविद्या आदिका वर्णन है। भूमिसम्बन्धी शल्य, शुभाशुभ परिज्ञान, भूमिके रूपगुण, शक्ति आदिका वर्णन भी स्थलगतामें पाया जाता है । रूपगता में रूपपरिवत्र्तन करनेके तन्त्र-मन्त्र आदि साधनोंका निरूपण किया है। न किस प्रकार सिंह, व्याध, गण, हिरण आदिका आकार धारण कर सकता है, इस प्रकारको विधियोंका निरूपण भी उसमें आया है। चित्रकर्म, काष्ठकर्म, लेप्यकमं एवं विभिन्न प्रकारकी आकृतियों के निर्माणकी विधियाँ भी कथित हैं । आकाशगता चूलिका में आकाशगामिनी विद्याका चित्रण आया है !
दृष्टिवादका सबसे महत्त्वपूर्ण भेद पूर्व है । पूर्वके १४ भेद हैं-- १. उत्पादपूर्व, २. अग्रायणीय, ३. वीर्यानुप्रवाद, ४ अस्ति नास्तिप्रवाद, ५. ज्ञानप्रवाद, ६. सत्यप्रवाद, ७. आत्मप्रवाद, ८ कर्मप्रवाद, ९ प्रत्याख्याननामधेय १०. विद्यानुवाद, ११. कल्याणनामधेय, १२. प्राणावाय, १३. क्रियाविशाल और १४. लोकबिन्दुसार । पूर्वसाहित्य सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण है । इसीके आधारपर वर्तमान में शौरसेनी आगम- साहित्य उपलब्ध होता है। अमायणी में पूर्वान्स, अपरान्त आदि चौदह प्रकरण थे । इनमेंसे पञ्चम प्रकरणका नाम चयनलब्धि था, जिसमें बीस पाहुड विद्यमान थे । बीस पाहुडोंमेंसे चतुर्थ पाहुडका नाम कर्मप्रकृति था । इस कर्मप्रकृतिपाहुडके कृति, वेदना आदि चौबीस अनुयोगद्वार थे; जिनकी विषयवस्तुको ग्रहण कर षट्खण्डागमके जीबट्ठाण, खुद्दाबन्ध, बन्धस्वरमित्व-विचय, वेदना, वर्गणा और महाबन्ध इन छह भण्डों की रचना हुई हैं। इसमें का कुछ अंश सम्यवत्त्वोत्पत्तिनामक जीवस्थानकी आठवीं चूलिकाको बारहवें अंग दृष्टिवाद के द्वितीय भेद सूत्रसे तथा गति आगति नामक नवीं चूलिकाको व्याख्याप्रज्ञप्ति से उत्पन्न बताया गया है। इस प्रकार वर्तमान आगम साहित्यका संबंध दृष्टिवाद अंगके साथ है । उत्पादपूर्वमें जोव, पुद्गल, काल आदि द्रव्योंके उत्पाद, व्यय और प्रौव्यका वर्णन है । अप्रायणीय पूर्वमें सात सौ सुनय और दुनय: छः द्रव्य, नौ पदार्थ, एवं पञ्चास्तिकायोंका वर्णन है । वीर्यानुप्रवादमें आत्मवीर्य, परवीर्य, उभयवीर्य, क्षेत्रवीर्य, कालवीर्य, भववीयं और तपवीर्यका वर्णन आया है । अस्ति नास्तिप्रवादपूर्व में स्वरूपचतुष्टयकी अपेक्षा समस्त द्रव्यों के अस्तित्वका और पररूपचतुष्टयको अपेक्षा उनके नास्तित्वका वर्णन है। ज्ञानप्रवादपूर्व में पाँच सम्यग्ज्ञान और तोन कुज्ञान इन आठ ज्ञानोंका विस्तारपूर्वक वर्णन है । सत्य प्रवादपूर्व में दशप्रकार के सत्यवचन, अनेक प्रकारके असत्यवचन और बारह
भूतधर और सारस्वताचार्य : १३