________________
हैं और इसमें श्रावकाचारका निरूपण किया गया है। अन्तःकृशांग नामक अंगमें २२,२८००० पद हैं । इसमें प्रत्येक तीर्थकरके तीर्थकालमें अनेक प्रकारके दारुण उपसर्गों को सहन कर निर्वाण प्राप्त करने वाले दस-दस अन्तःकृत केवलियोंका वर्णन है । अनुत्तरौपपादिकदशा नामक अंगमें ९२,४४००० पद हैं और एक-एक तीर्थकरके तीर्थकालमें नाना प्रकारके दारुण उपसर्गो को सहन कर पांच अनुत्तर विमानोंमें जन्म ग्रहण करनेवाले दस-दस मुनियोंका चरित्र अंकित है। प्रश्नव्याकरणमें आक्षेप-प्रत्याशेपपूर्वक प्रश्नोंका समाधान अंकित है । अथवा आक्षेपणो, विशेपणी, संवेदिनी और निर्वेदिनी इन चार कथाओंका विस्तृत वर्णन है । विपाकसूत्र अंगमें १,८४,००००० पद हैं। इसमें पुण्य और पापरूप कर्मों का फल भोगनेवाले व्यक्तियोंका चरित्र निबद्ध है। ___ बारहवां अंग दृष्टिकार है ! इस गान कार है.--१. परिकर्म, २. सूत्र, ३. प्रथमानुयोग, ४. पूर्व और ५. चूलिका। इनमेंसे परिकमके पाँच भेद हैं१. चन्द्रप्राप्ति, २. सूर्यप्रज्ञप्ति, ३. जम्बूद्वीपप्रशप्ति, ४, द्वीपसमुद्रप्राप्ति और ५. व्याख्याप्रशस्ति । चन्द्रप्रज्ञप्तिमें चन्द्रमाको आयु, परिवार, ऋद्धि, गति और चन्द्रबिम्बकी ऊँचाई आदिका वर्णन है। सूर्यप्रप्तिमें सूर्यको आयु, भोग, उपभोग, परिवार, ऋद्धि, गति और सबिम्बकी ऊँचाई, दिनको हानि-वृद्धि, किरणोंका प्रमाण और प्रकाश आदिका वर्णन है। जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिमें भोगभूमि और कर्मभूमिमें उत्पन्न हुए मनुष्य और तिर्यञ्चोंका तथा पर्वत, सरोवर, नदी, वेदिका, क्षेत्र, आवास आदिका वर्णन है। द्वापसमुद्रप्रज्ञप्तिमें द्वीप और समुद्रोंका विस्तार, अवगाह, क्षेत्रफल आदिका वर्णन आया है। व्याख्याप्रज्ञप्ति में पुद्गल, धर्म, अधर्म, आकाश, काल एवं जोबद्रव्यके भव्यत्व, अभव्यत्वका वर्णन किया गया है।
दष्टिवाद अंगका द्वितीय भेद सत्रनामक है। इसम जीयकी विवेचना विस्तारपूर्वक का गयो है । जीव अबन्धक है, अवलप है, अकर्ता है, अभोक्ता है, निगुण है, व्यापक है, अणुप्रमाण है, अस्तिस्वरूप है, नास्तिस्वरूप है, उभयरूप है इत्यादिकी विवेचना विभिन्न सिद्धान्तोंके पूर्वपक्षरूपमें की गयी है। इसमें क्रियावाद, अक्रियावाद, अज्ञानवाद, ज्ञानवाद, वेनयिकवाद आदि तीन सो तिरेसठ मतांका प्रतिपादन पूर्वपक्षके रूपमें किया गया है। दष्टिवादका तृतीय अंग प्रथमानुयोग है। इसमें २४ तीर्थकर, १२ चक्रवर्ती, ९ बलभद्र, ९ नारायण, ९ प्रतिनारायणोंके जोवनवृत्तके साथ विद्याधर, चक्रवर्ती, चारणऋद्विधारी मुनि और राजाओंके वंशोंका कथन किया गया है।
दृष्टिवादके पञ्चम भेदका नाम चूलिका है। इसके पांच भेद है-१. जलगता,
१२ : तीर्थकर महाबोर और उनको आचार्य-परम्परा