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करनेवाले सुग्रीय, विभीषण, हनुमानको जीवन-व्यापी कथा भी इस चरितकाव्यमें सम्बद्ध है । कतिपय पात्रोंके जीवन-आख्यान तो इतने विस्तृत आये हैं, जिससे उन्हें स्वतंत्र काव्य या पुराण से पाला जा है : ___ आधिकारिक कथावस्तु मुनि रामचन्द्रजीकी है और अवान्तर या प्रासंगिक कथाएँ बानर-वंश या विद्याधर-वंशके आख्यानके रूपमें आयीं हैं। इन दोनों वंशोंका कविने बहुत विस्तृत वर्णन किया है । यही कारण है कि चरितकान्यके समस्त गुण इस ग्रन्थमें समाविष्ट हैं । अंगीरूपमें शान्त रसका परिपाक हुआ है। शृंगारके संयोग और वियोग दोनों हो पक्ष सोता-अपहरण एवं राम-विवाहके अनन्तर घटित हुए हैं । करुण-रसके चित्रण में अभूतपूर्व सफलता मिली है । युद्ध में भाई-बंधुओंके काम आनेपर कुटुम्बियोंके विलाप पाषाणहृदयको भी द्रवीभूत करने में समर्थ हैं । वर्णनोंके चित्रगमें कविको पूर्ण सफलता प्राप्त हुई है। नर्मदाका रमणीय दृश्य अनेक उत्प्रेक्षाओं द्वारा चित्रित हआ है। नर्मदा मधुरशब्द करनेवाले सानापक्षियोंके समूहके साथ वार्तालाप करती हुई-सी प्रतीत होती है । फेनके समूहसे वह हँसती हुई-सी मालम पड़ती है। तरंगरूपी भृकुटोके विलासके कारण वह क्रुद्ध होता हुई नायिका-सी, आवर्तरूपी बुबुदोंसे युक्त नायिकाको नाभि जैसी, विशाल तटोंसे युक्त स्थल नितम्ब जैसी एवं निर्मल जल-वस्त्र जैसे प्रतीत होते थे ।
इस ग्रन्थमें १२३ पर्व हैं । इसे छह खण्डों में विभक्त किया जा सकता है१. विद्याधरकाण्ड २. जन्म और विवाहकाण्ड ३. वन-भ्रमण ४, सोता-हरण और उसका अन्वेषण
६. उत्तरचरित संक्षिप्त कथावस्तु
भगवान महावीरके प्रथम गणधर गौतमस्वामीको नमस्कार कर, उनसे रामकथा जाननेकी इच्छा प्रकट करनेपर, गौतमस्वामीने यह रामकथा कही है।
कथारम्भमें १. विद्याधरलोक २. राक्षसवंश ३. वानरवंश ४. सोमवंश ५. सूर्यबंश और ६. इक्ष्वाकुवंशके वर्णनके पश्चात् कथास्रोत सरिताको वेगवती धाराके समान आगे बढ़ता है। रावणका जन्म (७-८ पर्व)-राक्षसवंशी राजा रत्नश्रवा तथा महारानी
श्रुतपर और सारस्वताचार्य : २७९