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भारतीय इतिहासमें बताया गया है कि सीयक-हर्षके बाद उसका यशस्वी पुत्र मुंज उपनाम वाक्पति वि० सं० १०३१ (ई० सन् ९७४)में मालवाको गद्दी पर आसीन हुवा। वाक्पति मुंजने लाट, कर्णाटक, चोल और केरल के साथ युद्ध किया था । यह योद्धा तो था ही, साथ ही कला और साहित्यका संरक्षक भी था। उसने धारानगरीमें अनेक तालाब खुदवाये थे । उसको सभामें पद्मगुप्त, धनञ्जय, धनिक और हलायुध प्रभृति ख्यातिनामा साहित्यिक रहते थे । मुंजके अनन्तर सिन्धुराज या नवसाहशांक सिंहासनासीन हुआ। सिन्धराजके अल्पकालीन शासनके बाद उसका पुत्र भोज परमारोंकी गद्दी पर बैठा। इस राजकुलका यह सर्वशक्तिमान और यशस्वी नपति था। इसके राज्यासोन होनेका समय ई. सन् १००८ है । भोजने दक्षिणी राजाओंके साथ तो युद्ध किया हो, पर तुरुष्क एवं गुजरातके कोतिराजके साथ भी युद्ध किया । मेरुतुंगके अनुसार भोजने ५५ वर्ष ७ मास और ३ दिन राज्य किया है। भोज विद्यारसिक था। उसके द्वारा रचित ग्रन्थ लगभग एक दर्जन है। इन्हीं भोजके समयमें आचार्य प्रभाचन्द्र ने अपना प्रमेयकमलमार्तण्ड लिखा है-श्रीभोजदेवराज्ये श्रीमद्वारा लियासिना परापरसरमा पदप्रगाभाजितानलपुण्यनिराकृतनिखिलमलकलङ्कन श्रीमत्प्रभाचन्द्रपण्डितेन निखिलप्रमाणप्रमेयस्वरूपोद्योतपरीक्षामुखपदमिदं विवृतमिति'।
श्री पंडित कैलाशचन्द्रजी शास्त्रीने प्रभाचन्द्रका समय ई. सन् १०५० के लगभग माना है। अतः भोजका राज्यकाल ११वीं शताब्दी है।
आचार्य कवि मानतुगके भक्तामरस्तोत्रको शैली मयूर और बाणको स्तोत्रशैलीके समान है। अतएव शैलो तथा अन्य ऐतिहासिक तथ्योंके न मिलनेसे मानतुंगने अपने स्तोत्रको रचना भोजराज्यकालमें नहीं की है। यतः भोजके समयमें मयूर और बाणका अस्तित्व सम्भव नहीं है । यह चमत्कारी आख्यानोंसे स्पष्ट है कि मानतुग वाण-मयूरकालीन हैं और किसी न किसी रूपमें इनका सम्बन्ध बाण और मयूरके साथ रहा है।
संस्कृत साहित्यके प्रसिद्ध इतिहासज्ञ विद्वान डॉ० ए० वो० कीथने भक्तामर कथाके सम्बन्धमें अनुमान किया है कि कोठरियोंके ताले या पाशवद्धता संसार
१. प्रमेयकमलमार्तण्ड, निर्णयसागर प्रेस, बम्बई, सन् १९४१. अन्तिम प्रशस्ति
१० २९४ । २. A History of Sanskrit Litrature 1941, Page 214-215 (Religi
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२७२ : वीर्षकर महावीर और उनकी आचार्य-परम्परा