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(९) महाकाव्योचित गरिमाका पूर्ण निर्वाह
(१०) सौन्दर्य के उपकरणोंका काव्यत्ववृद्धिके हेतु प्रयोग | (११) आर्य जीवनका अकृत्रिम और साङ्गोपाङ्ग वर्णन । (१२) सामाजिक और राजनैतिक परिस्थितियोंपर पूर्ण प्रकाश ।
आचार्य ऋषिपुत्र
जेनाचार्य ऋषिपुत्र ज्योतिषके प्रकाण्ड विद्वान् थे। इनके वंशादिकका सम्यक् परिचय नहीं मिला है। इतना ही पता चला है कि ये जैनाचार्य गर्गके पुत्र थे । गर्ग ज्योतिषशास्त्र के प्रकाण्ड विद्वान् है । इनका एक ग्रन्थ ख़ुदा बस्शखाँ पब्लिक लाइब्रेरी पटना में 'पाशकेवली' नामका है । ग्रन्थ तो अशुद्ध है, पर विषयकी दृष्टिसे महत्त्वपूर्ण है । इस ग्रन्थकी अन्तिम प्रशस्ति में बताया है
जैन आसीज्जगद्वंद्यो गर्मनामा महामुनिः । तेन स्वयं निर्णीत यं सत्पाशात्रकेवली ॥ एतज्ज्ञानं महाज्ञानं जैन षिभिरुदाहृतम् | प्रकाश्य शुद्धशीलाय कुलीनाम महात्मना ॥
" शनोऽगुहलिकां दत्त्वा पूजापूर्वकमघवा कुमारों भव्यास्थासने स्थापयित्वा पाशको ढालाप्यते पश्चाच्छुभाशुभं ब्रवीति - इति गर्गेनामा महर्षिविरचितः पाशकेवली सम्पूर्ण: " ।
इन पंक्तियोंसे स्पष्ट है कि गर्गाचार्य ज्योतिषशास्त्र के विशेषज्ञ थे ! सम्भव है कि इन्हींके वंश में आचार्य ऋषिपुत्र उत्पन्न हुए हों। जैनेत्तर ज्योतिष ग्रन्थ 'वाराहिसंहिता' और 'अद्भुत सागर' में इनके वचन उद्धृत हैं। इससे इनकी विद्वत्तापर प्रकाश पड़ता है । आचार्य ऋषिपुत्रके वचन वाराहसंहिताकी भट्टोत्पलिटीका में भी उद्धृत है । अत: इनकी प्रसिद्धिका भी इसीसे अनुमान होता है ।
भट्टोत्पलि- टीका में इनकी गणना ज्योतिष के प्राचीन आचार्य आर्यभट्ट, कणाद, काश्यप, कपिल, गर्ग, पाराशर, बलभद्र और भद्रबाहु के साथ की गयी है । इससे ऋषिपुत्र प्राचीन एवं प्रभावक आचार्य ज्ञात होते हैं । सम्भवतः गर्गके पुत्र होनेके कारण ही ये ऋषिपुत्र कहे गये हैं । इनका निवासस्थान उज्जैनीके आस-पास ही प्रतीत होता है। Catalogus catajagorum में ऋषिपुत्र संहिताका भी उल्लेख आया है । मदनरत्न नामक ग्रन्थमें भी ऋषिपुत्र संहिताका कथन प्राप्त होता है । इन्हें निमित्तशास्त्र, शकुनशास्त्र तथा ग्रहों की स्थिति द्वारा भूत, भविष्यत् और वर्तमान कालीन फल, भूशोधन, दिक्शोधन, शल्यो
२६२ : दोषंकर महावीर और उनकी आचार्य-परम्परा