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समय - निर्णय
हॉ० ए० एन० उपाध्येने 'जोइंदु' के समयपर विस्तारपूर्वक विचार किया है । उनके निष्कर्ष निम्नप्रकार हैं
पारिपाती टीकायें परमात्मप्रकाशके दोहे उद्धृत
१ किये है।
२. चौदहवीं और बारहवीं शताब्दी में परमात्मप्रकाशपर बालचन्द और ब्रह्मदेवने क्रमश: कन्नड़ एवं संस्कृत टीकाएं लिखी हैं ।
३. कुन्दकुन्दके समयसारके टीकाकार जयसेनने १२वीं शताब्दी के उत्तरार्धमें समयसारटीका में परमात्मप्रकाशका एक दोहा उद्धृत किया है
४. हेमचन्द्र मुनि रामसिंहके दोहे अपने अपभ्रंशव्याकरणमें उद्धृत किये हैं। रामसिंहने जोके योगसार और परमात्मप्रकाशसे बहुतसे दोहे ग्रहण कर अपनो रचनाको समृद्ध बनाया है । अतः जो इंदु हेमचन्द्र और रामचन्द्र दोनोंसे पूर्ववर्ती हैं।
५. देवसेनकृत तत्त्वसारके अनेक पद्म परमात्मप्रकाशके ऋणी है । अत: जोइंदु देवसेनसे भी पूर्ववर्ती हैं।
६. चण्डके प्राकृतलक्षणमें 'यथा तथा मनयोः स्थाने' के उदाहरणमें निम्नलिखित दोहा प्राप्त होता है
काल हेविणु जोश्या जिम-जिम मोहू गलेइ | द्विमुतिमुदंसण लहइ जिउ नियमे अप्पु मुणेइ' |
अर्थात् जोइंदु चण्डके पूर्ववर्ती हैं। पर चण्डके समयके सम्बन्धमें अभी तक मतैक्य नहीं है ! डॉ० पी० डी० गुणेका मत है कि चण्ड उस समय हुए हैं जब अपभ्रंश भाषा केवल आभीरोंके बोलचालकी ही भाषा नहीं थी, अपितु साहित्यिक भाषा हो चुकी थी । अर्थात् ईसाकी छठीं शताब्दिके पश्चात् चण्डका समय होना चाहिए । अन्य विद्वानोंका अनुमान है कि चण्डके व्याकरणको व्यवस्थित रूप ७वीं शताब्दिमे प्राप्त हुआ है । अतएव जोइंदुका समय इसके पूर्व होना सम्भव है ।
कतिपय विद्वानोंने तो प्राकृतलक्षणका समय ई० पूर्व माना है । पर यह तर्कसंगत नहीं है । यतः जोइंदुके परमात्मप्रकाश और कुन्दकुन्दके ग्रन्थोंके तुलनात्मक अध्ययनसे यह स्पष्ट है कि परमात्मप्रकाश कुन्दकुन्दके मोक्षप्राभृत और पूज्य
१. वही, दोहा ११८५ ।
२४६ : तीर्थंकर महावीर और उनकी आचार्य-परम्परा