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कवयः सिद्धसेनाद्या वयं च कवयो मताः । मणय: पद्मरागाचा ननु काचोऽपि मेचकः । प्रवादिकरियूपानां केसरी नयकेसरः |
सिद्धसेनकविर्जीयाद्विकल्पनखराङ्करः ॥' पूर्वकालमें सिद्धसेन आदि अनेक कवि हो गये हैं और में भी कवि हूँ। पर दोनोंमें उतना ही अन्तर है, जितना कि पारागर्माण और कांचर्माणमें होता है।
वे सिद्धसेन कवि जयवन्त हों, जो प्रवादिरूपी हाथियोंके झुण्डके लिए सिंहके समान हैं। नेगमादि नय हो जिनके केशर-अयाल तथा अस्ति-नास्ति आदि विकल्प ही जिनके तीक्ष्ण नाखून थे। ___ आचार्य हेमचन्द्रने अपने शब्दानुशासनमें "उस्कृष्टेनूपेन" (रा२।३९) सूत्रके उदाहरणमें 'अनुसिद्धसेनं कवयः' द्वारा सिद्धसेनको सबसे बड़ा कवि बताया है।
जैनेन्द्र व्याकरणके 'उपेन' (११४१६) सूत्रको वृत्तिमें अभयनन्दिने 'उपसिद्धसेनं वैयाकरणाः' उदाहरण द्वारा सिद्धसेनको श्रेष्ठ व्याकरण बतलाया है।
जिनसेन प्रथमने अपने 'हरिवंशपुराण में सिद्धसेनकी सूक्तियों (वचनों) को तीर्थंकर ऋषभदेवकी सूक्तियोंके समान सारयुक्त एवं महत्त्वपूर्ण बतलाया है । यथा
जगत्प्रसिद्धबोषस्य वृषभस्येव निस्तुषाः ।
बोधन्ति सतां बुद्धि सिद्धसेनस्य सूक्तयः ।। अर्थात् जिनका श्रेष्ठ ज्ञान संसारमें सर्वत्र प्रसिद्ध है ऐसे श्री सिद्धसेनकी निर्मल सूक्तियाँ श्रीऋषभ जिनेन्द्रको सूक्तियोंके समान सस्पुरुषोंको बुद्धिको सदा विकसित करती हैं। जीवन-परिचय
सिद्धसेनके जीवन-वृत्तके सम्बन्धमें प्रभावकचरितमें जो तथ्य उपलब्ध हैं उनसे प्रकट है कि उज्जयिनी नगरीके कात्यायन गोत्रीय देवर्षि ब्राह्मणकी देवश्री पत्नीके उदरसे इनका जन्म हआ था। ये प्रतिभाशाली और समस्त शास्त्रोंके पारंगत विद्वान थे। वृद्धवादि जब उज्जयिनी नगरीमें पधारे तो उनके साथ सिद्धसेनका शास्त्रार्थ हुआ। सिद्धसेन वृद्धवादिसे बहुत प्रभावित हुए और उनका १. आदिपुराण, भाग १, भारतीय ज्ञानपीठ संस्करण-१॥३९-४२ । २. हरिवंशपुराण, भारतीय ज्ञानपीठ संस्करण-२३० । २०६ : तीर्थंकर महावीर और उनकी आचार्य-परम्परा