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लिखा है । पर श्रुतावतार अकलंकदेवसे पश्चात्वर्ती रचना है।
तिरूमकूडल नरसिपुर ताल्लुकेके शिलालेख नं. १०५में समन्तभद्रको मिल संघके अन्तर्गत नन्दिसंघकी अरूंगल शाखाका विद्वान् सूचित किया है।
अतः यह निश्चयपूर्वक कह सकना कठिन है कि समन्तभद्र अमुक गण या संघके थे । इतना तथ्य है कि समन्तभद्र गुद्धविच्छाचार्यके 'मोक्षमार्गस्य नेतारम्' मंगलस्तोत्रमें स्तुत आप्तके मीमांसक होनेसे वे उनके तथा कुन्दकुन्दके अन्वयमें
समय-निर्धारण
वाचार्य समन्तभद्रके समयके सम्बन्धमें विद्वानोंने पर्याप्त ऊटापोह किया है। मि. लेविस राईसका अनुमान है कि समन्तभद्र ई० को प्रथम या द्वितीय शताब्दीमें हुए हैं। __ 'कर्नाटक गिनींनो' नाम लड़ी अनाक रायता आर नरसिंहाचार्यने समन्तभद्रका समय शक संवत् ६० (ई० सन् १३८)के लगभग माना है। उनके प्रमाण भी राईसके समान ही हैं।
श्रीयुत् एम० एस० रामस्वामी आयंगरने अपनी "Studies in Sowth Indian Jainisni' नामक पुस्तक में लिखा है-“समन्तभद्र उन प्रख्यात दिगम्बर लेखकोंको श्रेणीमें सबसे प्रथम थे, जिन्होंने प्राचीन राष्ट्रकूट राजाओंके समयमें महान् प्राधान्य प्राप्त किया।" ___ मध्यकालीन भारतीय न्यायके इतिहास (हिस्ट्रो ऑफ दो मिडिआयल स्कूल
ऑफ इण्डियन लाजिक) में डॉ० सतीशचन्द्र विद्याभूषणने यह अनुमान प्रकट किया है कि समन्तभद्र ई० सन् ६००के लगभग हुए हैं | उन्होंने अपने इस कथनके लिए कोई तक नहीं दिया। केवल इतना ही बतलाया है कि बौद्ध ताकिफ धर्मकोतिका समकालीन कुमारिलभट्ट है और इनका समय ई० सन् सातवीं शताब्दी है । कुमारिलने समन्तभद्रका निर्देश किया है । अतः कुमारिल. के पूर्व समन्तभद्रका समय मानना उचित है।
सिद्धसेनने अपने न्यायावतारमें समन्तभद्रके रत्नकरण्डकश्रावकाचारका निम्नलिखित पद्य उद्धृत किया है.-.
"आप्तोपजमनुल्लंध्यमदृष्टेष्टविरोषकम् ।
तत्त्वोपदेशकृतसा शास्त्र कापथघट्टनम् ।। १. Inscriptions ar shravan Belgol नामक पुस्तककी प्रस्तावना । २. रस्मकरणश्रावकाचार, पद्य ।
प्रतधर सारस्वताचार्य : १८१