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इस षष्ठ अध्यायमें प्रथम सूत्रपाठ " सम्यक्त्वञ्च" [ ६।२१] सूत्र आया है। पर द्वितीय सूत्रपाठ में यह सूत्र नहीं मिलता है ।
सप्तम अध्यायमें कई सूत्रोंमें शाब्दिक अन्तर आया है। कुछ सूत्र ऐसे भी हैं जो प्रथम सूत्रपाठ उपलब्ध हैं, पर द्वित्तीयमें नहीं । प्रथम सूत्रपाठ व्रतोंको स्थिर करनेके लिए बहिंसादिव्रतोंकी पांच-पांच भावनाएं बतलायी गयी है । इन भावनाओंका अनुचिन्तन करनेसे व्रत स्थिर रहते हैं । अत्तः प्रथम सूत्रपाठ में अहिंसाव्रतकी "वाङ्मनो गुप्तीर्वादाननिक्षेपण समित्या लोकितपानमोजनानि पञ्च" [ ७|४] सत्याणुत्तकी "क्रोध-लोम - मोरुत्व हास्यप्रत्याख्यानान्यनुवीचि भाषणञ्च -मैक्ष्यपञ्च" [७|५] अयोयंव्रतकी "शून्यागार - विमोचितावास-परोपरोधाकरणशुद्धि-सधर्मादिसंवादाः पञ्च ।" [७१६], ब्रह्मचर्य व्रतकी "स्त्री रागकथाश्रवणतन्मनोहराङ्गनिरीक्षण - पूर्वरतानुस्मरण-वृष्येष्टरस-स्वशरीसंस्कारत्यागाः पञ्च" i७७] और परिभ्रहत्यागम्रतके "मनोज्ञामनोकेन्द्रियविषय-राग-द्वेष-वर्जनानि पञ्च” [७|८] — भावनाबोधक सूत्र आये है । ये पांचों सूत्र द्वितीय सूत्रपाठ में नहीं है । किन्तु तृतीय सूत्रके भाष्यमें इनका भाव आ गया है।
अष्टम अध्यायमें प्रथम सूत्रपाठ " सकषायत्वाञ्जीवः कर्मणो योग्यान् पुद्गछानादत्ते स बन्धः " [८/२] सूत्र आया है। द्वित्तीय सुत्रपाठमें इसके दो रूप मिलते है । प्रथम सूत्रमें "सकषायत्वाज्जीवः कर्मणो योग्यान्दपुद्गलानादत्ते" [2] अंश आया है और दूसरे सूत्र में “स बन्धः” [ ८|३] सूत्र बया है। इस प्रकार एक हो सूत्र के दो सूत्र रूप द्वितीय सूत्रपाठ हो गये हैं। प्रथम सूत्रपाठ में “मति श्रुतावधि-मनः पर्यय - केवलानाम् " [ ८६] सूत्र आया है । पर द्वितीय सूत्रपाठ में इसका संक्षिप्त रूप "मत्या दोनाम्" | ८१७] उपलब्ध होता है । आचार्य अकलंकदेवने "मत्यादीनाम्" पाठको समीक्षा कर प्रथम सूत्रपाठमें आये हुए सूत्रको तर्कसंगत बतलाया है। इसी प्रकार प्रथमसूत्रपाठके "दान लाभ-भोगोपभोग-दीर्याणाम् [ ८|१३] सूत्रके स्थानपर द्वितीय सूत्रपाठ "दानादीनाम् [८|१४] संक्षिप्त सूत्र लाया है। भाष्यकारने "अन्तरायः पञ्चविधः । तद्यथा— दानस्यान्तरायः लाभस्यान्तरायः, भोगस्यान्तराय उपभोगस्यान्तरायः, वीर्यान्तराय इति" उपर्युक्त प्रथम सूत्रपाठ आये 'हुए अन्तरायके मेदोंका नामोल्लेख किया है। पुण्यप्रकृतियोंका प्रतिपादन करनेवाले सूत्रोंमें मौलिक अन्तर बाया है। प्रथम सूत्रपाठमें पुष्यप्रकृतियों की गणना करते हुए लिखा है "सद्ध ेद्य-शुभायुर्नाम - गोत्राणि पुष्यम्" [८/२५] और "अतोऽन्यत् पापम्" [८/२६] कहकर पापप्रकृतियोंकी गणना की है। द्वित्तीय सूत्रपाठ में पुष्पप्रकृतियोंका कवन करते हुए "सद्ध असम्यक्त्व हास्यरतिपुरुषवेदशुभायुर्नामगोत्राणि पुष्यम्" [८/२६ ] लिखा है । इस सूत्र के माध्यमें "अतोऽ
१६६ : श्रीर्थंकर महावीर और उनको आचार्य -परम्परा