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गृद्धपिच्छाचार्यने षट्स्खण्डागमके इन आठ अनुयोगद्वारोंको लेकर उक्त सूत्रकी रचना की है । मति, श्रुत आदि पांच ज्ञानोंका जैसा वर्णन तत्वासूत्रमें आया है वह स्रोतकी दृष्टिसे षटवण्डागमके वर्गणाखण्डके अन्तर्गत कर्मप्रकृति-अनुयोगद्वारसे अधिक निकट प्रतीत होता है। इसी प्रकार तत्त्वार्थसूत्रमें 'मतिः स्मृतिः संज्ञा चिन्ता [१।१३]को मतिज्ञानके नामान्तर कहा है। इसका स्रोतषट्कण्डागमके कर्मप्रकृति अनुयोगद्वारका 'सण्णा सदो मदीचिन्ता चेदि' ५-५-४१] सूत्र है। इसी प्रकार 'भवप्रत्ययोऽधिदेवनारकामाम् [तत्त्वार्थसूत्र १।२१]का स्रोत षट्खण्डागमके कर्मप्रकृति-अनुयोगद्वारका 'जं तं भवपच्चइयं तं देव-णेरइयाणं" [५-५-५४] सूत्र है।
तत्त्वार्थसत्रमें पांच ज्ञानोंको प्रमाण मानकर उनके प्रत्यक्ष ओर परोक्ष भेद किये गये हैं । इन भेदोंका स्रोत प्रवचनसारकी निम्नलिखित गाथा है
जं परदो विण्णाणं तं तु परोक्ख ति मणिदमत्थेसु ।
जदि केवलेण णादं हदि हि जोवण पच्चक्खं ।' अर्थात् पदार्थविषयक जो ज्ञान परकी सहायतासे होता है, वह परोक्ष कहलाता है और जो ज्ञान केवल आत्माके द्वारा जाना जाता है वह प्रत्यक्ष कहलाता है ।
द्वितीय अध्यायके प्रारम्भमें प्रतिपादित पांच भावोक बोधक सूत्रका स्रोत पञ्चास्तिकायकी निम्न लिखित गाथा है
उदयेण उचसमेण य खयेण दुहि मिस्सदेहि परिणामे ।
जुत्ता ते जीवगुणा बहुसु अत्थेसु विच्छिण्णा ॥२ पञ्चम अध्यायमें प्रतिपादित द्रव्य, गुण, पर्याय, अस्तिकाय आदि विषयोंके स्रोत आचार्य कन्दकुन्दके पश्चास्तिकाय, प्रवचनसार और नियमसारकी अनेक गाथाओंमें प्राप्य हैं। तत्त्वार्थसूत्रमें द्रव्यलक्षणका निरूपण दो प्रकारसे आया है। उसके लिए सत्की परिभाषाके पश्चात् “सद्व्यलक्षणम्" (५।२९) और "गुणपर्ययवद्रव्यम्" (५:३८) सूत्रोंकी रचना की है। ये सभी सूत्र कुन्दकुन्दकी निम्र गाथासे सृजित हैं
"दव्वं सल्लक्खणियं उप्यादन्वयधुवत्त संजुत्तं ।
गुणपज्जयासयं वा जं तं भणति सम्वण्हू ।। पंचम अध्यायमें "स्निग्धरूक्षत्वाद्वन्धः', 'न जघन्यगुणाना', 'गुणसाम्ये सदृशानाम्'; 'द्वधिकादिगुणनां तु [५-३३,३४,३५,३६] सूत्रोंद्वारा स्निग्ध और १, प्रवचनसार, ज्ञानाधिकार, गाथा-५८ । २. पश्चास्तिकाय, गाया ५६ । ३. पश्चास्तिकाम, गाथा १० ।
१६. : तीर्थंकर महावीर और उनकी आचार्य-परम्परर