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स प्राणिसंरक्षणसावधानो बभार योगी किल गुदघपक्षान् ।
तदा प्रभृत्येव बुधा यमाहुराचार्यशब्दोत्तरगृध्रपिच्छम् ।।' अन्य शिलालेखमें भी गृद्धपिच्छका उल्लेख प्राप्त होता है
अभूदुमास्यातिमुनीश्वरोऽसावाचार्यशब्दोत्तरगृध्रपिच्छः । तदन्वये सत्सदृशोऽस्ति नान्यस्तात्कालिकाशेषपदार्थवेदी । आचार्य कुन्दकुन्दके पवित्र वंशमें सकलार्थक शाता उमास्वाति मुनीश्वर हुए, जिन्होंने जिनप्रणीत द्वादशांगवाणीको सूत्रोंमें निबद्ध किया । इन आचार्यने प्राणिरक्षाके हेतु गृद्धपिच्छोंको धारण किया। इसी कारण वे गृद्धपिच्छाचार्यके नामसे प्रसिद्ध हुए । आमलेखीय प्रमाणमें गृद्धपिच्छाचार्यको श्रुतकेलिदेशोय भी कहा गया है। इससे उनका आगमसम्बन्धी सातिशय ज्ञान प्रकट होता है। ___तत्वार्थसूत्रके रचयिता गृपिच्छाचार्यका उल्लेख श्रवणबेलगोलाके अभिलेखोंमें ४०, ४२, ४३,४७ और ५० संख्यकमें भी पाया जाता है। अभिलेखसंख्या१०५ और १०८ में तत्त्वार्थसूत्रके कर्ताका नाम उमास्वाति भी आया है और गृपिच्छ उनका दूसरा नाम बतलाया है । यथा--
श्रीमानुमास्वातिरयं यतीशस्तत्त्वार्थसूत्रं प्रकटीचकार । यन्मुक्तिमार्गाचरणोधतानां पाथेयमग्यं भवति प्रजानां ॥ तस्यैव शिष्योजनि गृद्धपिच्छ-द्वित्तीयसंशस्य बलाकपिच्छः ।
यत्सूक्तिरत्नानि भवन्ति लोके मुफ्त्यङ्गनामोहनमण्डनानि ॥ यतियों के अधिपति श्रीमान् उमास्वातिने तत्त्वार्थसूत्रको प्रकट किया, जो मोक्षमार्गके आचरणमें उद्यत मुमुक्षुजनोंके लिए उत्कृष्ट पाथेय है। उन्हींका गृद्धपिच्छ दूसरा नाम है। इन मुद्धपिच्छाचार्य के एक शिष्य बलापिच्छ थे, जिनके सूक्तिरत्न मुक्त्यङ्गनाके मोहन करने के लिए आभूषणोंका काम देते हैं।
इस प्रकार दिगम्बर साहित्य और अभिलेखोंका अध्ययन करनेसे यह ज्ञात होता है कि तत्त्वार्थसूत्रके रचयिता गृद्धपिच्छाचार्य, अपरनाम उमास्वामि या उमास्वाति हैं।
कुछ विद्वानोंने तत्त्वार्थसूत्रका रचयिता कुन्दकुन्दको माना है। आचार्य
१. जनशिलालेखसंग्रह, प्रथम भाग, अभिलेखसं० १०८, पृ० २१०-११ । २. जनशिलालेखसंग्रह, प्रथम माग, अभिलेखसंख्या-४३, पृ० ४३ । ३. वही, अभिलेखसंख्या-१०५, पृ० १९८ ।
श्रुतघर और सारस्वताचार्य : १४७