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है - "एदेण वियाहपण्णत्तिसुत्तेण सह कथं ण विरोहो ? ण एदम्हादो तस्स पुवभूदस्स आइरियमेएण भेदमावण्णस्स एयत्ताभावादो "" इस व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्रके साथ विरोध क्यों नहीं है ? आचार्यभेदसे भिन्नता होनेके कारण इन दोनों में एकत्व नहीं हो सकता ।
इस कथन में व्याख्याप्रज्ञप्तिके वचनोंको सूत्र कहा है और आचार्य भेदसे भिन्न कहा है | अतः यह व्याख्याप्रज्ञप्ति विचारणीय है । सम्भवतः यह वही हो, जिसका इन्द्रनन्दिने उल्लेख किया है और जो वीरसेन स्वामीको प्राप्त थी। आचार्य अकलंकदेवने अपने तत्त्वार्थवार्तिक में भी दो स्थलोंपर २/४९/८ और ४/२६ १५ में व्याख्याप्रज्ञप्तिदण्डकका उल्लेख किया है और दोनों ही स्थानोंमें षट्खण्डागमसे उसका भेद वतलाया है । अतएव हमारा अनुमान है कि व्याख्याप्रज्ञप्ति अन्य किसी आचार्यकी कृति है, वप्पदेवकी नहीं । वप्पदेवने व्याख्याप्रज्ञप्तिको जोड़कर षट्खण्डोंपर अपनी टीका लिखी है। यह सत्य है कि वम्यदेव सिद्धान्तविषयक सर्व विद्वान थे।
समय- विचार
aurदेवका समय वीरसेन स्वामीके पूर्व है । वीरसेनाचार्य के समक्ष वप्पदेवकी व्याख्या वर्तमान थो । वीरसेनका समय डॉ० होरालालजोके मतानुसार ई० सन् ८१६ है, अतः इसके पूर्व बप्पदेवका समय सुनिश्चित है । वप्पदेवने शुभनन्दि और रविनन्दिसे आगमग्रन्थोंका अध्ययन किया है और इन दोनों आचाय की प्राचीनता श्रुतधरोंके रूपमें प्रसिद्ध है। एलाचार्यका समय ई० सन् ७६६-७७६ है, और इनसे पूर्व वप्पदेवका समय होना चाहिए। इस क्रमसे हम यतिवृषभ और आर्यमक्षु-नागहस्तिके समकालीन वप्पदेवको मान सकते हैं । संक्षेप में पदे का समय ५ वीं - ६ वीं शती है ।
auraवका वैदुष्प और प्रतिभा
चप्पदेवकी रचना कोई भी उपलब्ध नहीं है। धवला एवं जयधवलामें इनके नामसे जो उद्धरण आते हैं, उनसे इनके वैदुष्यपर प्रकाश पड़ता है । षट्asianमें इनका यत्र-तत्र उल्लेख है । अतएव आचार्यके रूपमें तप्प देवप्रतिष्ठित है । जयधवला में इनकी मतभिन्नताका उल्लेख करते हुए कहा है
'चण्णिसुतम् वप्पदेवाइरियलिहिदुच्चारणाए अंतो मुहुत्तमिति भणिदो । अम्हेहि तिहिदुच्चारणाए पुणे जह० एगसमयो उक्क० संखेज्जा समयात्ति
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1. षट्खण्डागम, पु० १०, पृ० २३८ ।
श्रुतवर और सारस्वताचार्य : ९७