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मूल्यवान : अतीतपर्याय
यों तो यह जीव अनादि कालसे संसार परिभ्रमण करता चला आ रहा है । इसकी उन असंख्यात पर्याय - जन्मों का कोई महत्त्व नहीं है; क्योंकि जिन पर्याय या जन्मोंमें इसने अपनी आत्मशक्तिके विकासका कोई प्रयास नहीं किया। पर्याय या जन्म वही महत्त्वपूर्ण या मूल्यवान है, जिसमें व्यक्ति जन्म-मरणके चक्रसे मुक्ति प्राप्त करनेके लिये सकल्प या साधनाका आरम्भ करता है । विगत उन अगणित जन्मों का कोई महत्त्व या मूल्य नहीं हैं, इसलिए कि जिनमें चेतनके स्वरूप बोधके प्राप्त करने का प्रयास नहीं हुआ है। वस्तुतः जीवनके दो रूप हैं : १. मर्त्य जीवन और २. अमर्त्य जीवन जिस जीवनमें क्षणभंगुर विषम भोगोंकी तृप्तिका प्रयास किया जाता है, वह मर्त्य जीवन है और यह जीवन मूल्यहीन है। मूल्यकी प्रतिष्ठा अमत्यं जीवनमें होती है। यह जीवन अमृत और अमर इसीलिये कहा जाता है कि इसमें धर्म-अंकुर उत्पन्न होता है, अथवा धर्मका बीज वपन किया जाता है।
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तीर्थंकर महावीरके अगणित और संख्यातीत जन्मोंमें भिल्ल जीवनका सबसे अधिक महत्त्व और मूल्य है। क्योंकि इसी जीवनमें उन्हें योगिराजका आशीर्वाद मिला और मोहग्रन्थिको भेदन करनेके लिये निष्ठाको प्राप्ति हुई 1 इस जीवन में अहिंसाका बीज वपन हुआ । हिसानन्दो पुरुरवा भील किस प्रकार करुणावृत्तिके कारण तीर्थंकर महावीरके पदको प्राप्त हुआ, यह मननीय और चिन्तनीय है | वास्तव में वही मनुष्यजन्म सफल है, जिसमें आत्मोत्या नकी प्रेरणा प्राप्त हो, जिस जीवनसे सावनाका मार्ग आरम्भ हो और जीवनका तिमिर छिन्न होकर ज्ञान का आलोकदीप प्रज्वलित हो सके । पुरुरवापर्याय : मंगल प्रभात
तीर्थंकर महावीर चननेका उपक्रम भिल्लसरदार पुरुरवाके जीवनसे होता है । यह सरदार पुण्डरीकिणी नगरीसे दूरवर्ती मधुक नामक अरण्य में निवास करता था। अनेक भिल्ल इसकी सेवामें तत्पर रहते थे तथा इसकी आशाका पालन करना वे अपना परम कर्त्तव्य समझते थे । इस पुरुरवाकी पत्नीका नाम कालिका था, जो अत्यन्त भद्र परिणामी और कल्याणकारिणी थी । भिल्लराज अपने साथियोंके साथ दस्यु कर्म करता हुआ आखेटमें संलग्न रहता था । एक दिन पति-पत्नी वन विहारके लिये गये । पुरुरवाने वृक्षोंके झुरमुट में दो चमकती आँखें देखीं । उसने अनुमान लगाया कि वहाँ कोई जंगली जानवर स्थित है । अतएव धनुष पर बाण चढ़ाया और सघन वृक्षोंके बीच स्थित उस व्यक्तिका वध करना चाहा । कालिकाने बीचमें रोक कर कहा - "नाथ ! यहाँ शिकार २६ तीर्थंकर महावीर और उनकी आचार्य - परम्परा