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________________ कर स्वयं अपने लिये पथका निर्माण करते हैं। वे निर्झर थे, कुलिका (नहर) नहीं। उन्होंने कठिन से कठिन तप कर, कामनाओं और वासनाओंपर विजय पा कर लोक-कल्याणका ऐसा उज्ज्वल मार्ग तैयार किया, जो प्राणिमात्रके लिये सहजगम्य और सुलभ था । कर्मयोगी महावीरके व्यक्तित्व में कर्मयोगको साधना कम महत्त्वपूर्ण नहीं है। बे स्वयंबद्ध थे, स्वयं जागरुक थे और बोधप्रापिके लिये स्वयं प्रयत्नशील थे। न कोई उनका गुरु था और न किसी शास्त्रका आधार ही उन्होंने ग्रहण किया था । वे कर्मठ थे और स्वयं उन्होंने पथका निर्माण किया था। उनका जीवन भय, प्रलोभन, राग-द्वेष सभोसे मुक्त था । वे नील गगनके नीचे हिंस्र-जन्तुओंसे परिपूर्ण निर्जन बनोंमें कायोत्सर्ग मुद्रामें ध्यानस्थ हो जाते थे। वे कभी मृत्युछायासे आक्रान्त इमशानभूमिमें, कभी गिरि-कन्दराओंमें, कभी गगनचुम्बी उत्तुंग पर्वतोंके शिखर, कमी साख-कार, 15- निनाद करती हुई सरिताओंके तटोंपर और कभी जनाकीर्ण राजमार्गपर कायोत्सर्ग-मुद्रामें अचल और अडिगरूपसे ध्यानस्थ खड़े रहते थे। वे कर्मयोगी शरीरमें रहते हुए शरीरसे पृथक्, शरीरकी अनुभूतिसे भिन्न जीवनको आशा और मरणके भय से विमुक्त स्वको शोधमें संलग्न रहते थे। कर्मयोगी महाबीरने अपने श्रम, साधना और तप द्वारा अणित प्रकारके उपसर्गोको सहन किया। कहीं सुन्दरियोंने उन्हें साधनासे विचलित करनेका प्रयास किया, तो कहीं दुष्ट और अज्ञानियोंने उन्हें नाना प्रकारको यातनाएं दीं, पर वे सब मौनरूपसे सहन करते रहे। न कभी मनमें ही विकार उत्पन्न हुआ और न तन हो विकृत हुआ । इस कर्मयोगीके समक्ष शाश्वत विरोधी प्राणी भो अपना वरभाव छोड़कर शान्तिका अनुभव करते थे | धन्य है महावीरका वह व्यक्तित्व, जिसने लोह पुरुषका सामर्थ्य प्राप्त किया और जिस व्यक्तित्वके समक्ष जादु, मणि, मन्त्र-तन्त्र सभी फीके थे । अद्भुत साहसो महावीरके व्यक्तित्वमें साहस और सहिष्णुताका अपूर्व समावेश हुआ था । सिंह, सर्प जैसे हिस्र जन्तुओंके समक्ष वे निर्भयतापूर्वक उपस्थित हो उन्हें मौन रूपमें उद्बोधित कर सन्मार्गपर लाते थे। जरा, रोग और शारीरिक अवस्थाओंके उस घेरेको, जिसमें फैम कर प्राणी हाहाकार करता रहता है, महावीर साहसी बन मृत्यु-विजेताके रूप में उपस्थित रहते थे । महावीरने बड़े साहसके तीर्थकर महावीर और उनकी देशना : ६०५
SR No.090507
Book TitleTirthankar Mahavira aur Unki Acharya Parampara Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherShantisagar Chhani Granthamala
Publication Year
Total Pages654
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size14 MB
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