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४. जीवनको सहयोग और सहकारिताके आधार पर सुखी एवं समृद्ध बनाना।
५. व्यावसायिक ज्ञान, औद्योगिक कोशलके हस्तान्तरणका नियमन एवं वृद्ध, असहाय और बच्चोंको रक्षाका प्रबन्धसम्पादन |
६. मानसिक विकास, संकेत (Suggestion) अनुकरण (Imiralton) एवं सहानुभूति (Sympathy) द्वारा बच्चोंके मानसिक विकासका वातावरण वस्तुत करना।
७. भोगेच्छाओंको नियन्त्रित करते हुए संयमित और आध्यात्मिक जोयनकी उन्नति करना।
८. जातीय जीवनके सातत्यको दृड़ रखते हुए धर्मकार्य सम्पन्न करना ।
९. प्रेम, सेवा, सहयोग, सहिष्णुता, शिक्षा, अनुशासन आदि मानवके महत्त्वपूर्ण नागरिक एवं सामाजिक गुणोंका विकास करना।
१७. आर्थिक स्थायित्वके हेतु उचित आयका सम्पादन करना।
११. विकास और दृढ़ताके लिए आमोद-प्रमोद एवं मनोरंजनसे सम्बद्ध कार्योंका प्रबन्ध करना ।
१२ अनि संस्थाकी सुदरताके लिए वैयावृत्तिका सम्पादन करना । १३. पारिवारिक बन्धनोंको स्वाकार करना।
१४. पारिवारिक दायित्व-निर्वाहोंके साथ आचार और धर्मका यथावत् पालन करना।
१५. अधिकारों और कर्तव्योंमें सन्तुलन स्थापित करना ।
वस्तुतः परिवार-गठनका आधार मातृ स्नेह, पितृ-प्रेम, दाम्पत्य-आसक्ति, अपत्य-प्रीति, अतिथि सत्कार, सेवा-वैयावृत्ति और सहकारिता है। इन आधारों पर ही परिवारका प्रासाद निर्मित है। यदि ये आधार कमजोर या क्षीण हो जाये, तो परिवार-संस्थाका विघटन होने लगता है। यों तो परिवारके उद्देश्यों में स्त्री-पुरुषके यौनसम्बन्धकी प्रमुखता है, पर विषयभोगोंका सेवन कटु औषधके समान अल्परूप में ही करना हितकर है। मनोहर विषयोंका सेवन करनेसे तृष्णाको जागृत्ति होती है और यह तृष्णारूपी ज्वाला अहनिश वृद्धिंगत होती जाती है। अतएव विषयमोगोंका सेवन बहुत ही सौमित और नियंत्रित रूपमें करना चाहिए। जिस प्रकार अधिक मिठाई खानेसे स्वस्थ रहनेको अपेक्षा मनुष्य बीमार पड़ जाता है । उसी प्रकार जो अधिक कामभोगोंका सेवन करता है, वह भी मानसिक और शारीरिक रोगोंसे आक्रान्त हो जाता है। वासनाकी शान्तिके लिए सीमित रूपमें ही विषयोंका सेवन परिवार के लिए हितकर होसा
तीर्थकर महावीर और उनकी देशना : ५५३