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वीतराग चारित्र शुभोपयोगका नाम सदाचार एवं अशुभोपयोगका नाम कदाचार है ।
परमपद प्राप्तिहेतु: बाचारके भेद
परमपद-प्राप्तिके मार्गविवेचनकी दृष्टिसे आचारके दो भेद है: - ( १ ) निवृत्ति - मूलक आचार और (२) प्रवृत्तिमूलक आधार | निवृत्तिमूलक बाचारको श्यागमागं या श्रमणमार्ग कहा जाता है। यह मार्ग कठिन है, पर जल्द पहुँचानेवाला है । समस्त पदार्थोंस मोह-ममस्व त्यागकर वीतराग आत्म-तस्यको उपलब्धिके हेतु अरण्यवास स्वीकार करना और इन्द्रिय तथा अपने मनको अधीनकर आत्मस्वरूप में रमण करना निवृत्ति या त्यागमार्ग है। यह आचारका मार्ग सर्वसाधारण के लिये सुलभ नहीं । पर है निर्वाणको प्राप्त करानेवाला | यह कण्टकाकीर्ण मार्ग है । इसकी साधना विरले जितेन्द्रिय ही कर पाते है । इसमें सन्देह नहीं कि इस निवृत्तिमागंका अनुसरण करनेसे रागद्वेष-मोहादिसे रहित निर्मल आत्मतत्त्वको उपलब्धि शीघ्र ही होती है। इस आचारमार्गका नाम सकलचारित्र या मुनिधर्म है ।
द्वितीय मार्ग प्रवृत्ति मार्ग है। यह सरल है, पर है दूरवर्ती। इस मार्ग द्वारा आत्मतस्वकी प्राप्ति में बहुत समय लगता है। इस आचारमार्ग में किसीका भय नहीं है । अतः इसे पुष्पाकीणं मागं कहा जाता है । प्रवृत्तिके दो रूप हैं:(१) शुभ और ( २ ) अशुभ अशुभ प्रवृत्तिका त्यागकर शुभ प्रवृत्तिका अनुसरण करना विकलाचरण है। संक्षेपमें आचारको दो भागों में विभक्त किया जा सकता है। मुनि या साधुका आचार और गृहस्य या श्रावकका आचार |
श्रावकाचार
श्रावकशब्द तीन वर्णोंके संयोगसे बना है और इन तीनों वर्णोंके क्रमशः तीन अर्थ है: -- (१) श्रद्धालु, (२) विवेकी और (३) क्रियावान । जिसमें इन तोनों गुणों का समावेश पाया जाता है वह श्रावक है । व्रतधारी गृहस्थको श्रावक, उपासक और सागार आदि नामोंसे अभिहित किया जाता है । यह श्रद्धापूर्वक अपने गुरुजनों – निर्ग्रन्थमुनियोंके प्रवचनका श्रवण करता है, अतः यह श्राद्ध या श्रावक कहलाता है । श्राचकके आचारका वर्गीकरण कई दृष्टियोंसे किया जाता है । पर इस आचारके वर्गीकरण के तीन आधार प्रमुख हैं:
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१. द्वादशव्रत, २. एकादशत्रतिमाएँ, ३ पक्ष, चर्या और साधन । सावद्यक्रिया - हिंसाकी शुद्धिके तीन प्रकार हैं: - ( १ ) पक्ष, (२) चर्घा या
तीर्थंकर महावीर और उनकी देशना : ५०९