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उपमूहन, स्थितीकरण, वात्सल्य और प्रभावना इन चारोंका पालन 'स्व' और 'पर' दोनों में हो हुआ करता है। अन्य व्यक्तियों के समान अपनेको भी संभालना, गिरनेका प्रसंग आनेपर सावधान हो जाना और कदाचित् गिरजानेपर पुनः पदमें अपनेको प्रतिष्ठित करना आवश्यक है। ___ दर्शन लाया मोसमा मिलिज होनेने दो कारण है:-(१) आगम ज्ञानका अभाव या अल्पता और (२) संहननको कमी। इन दोनों कारणोंसे जीव परीषह और उपसर्ग सहन करनेसे विचलित हो सकता है । सम्यग्दर्शनके पच्चीस दोष या न्यूनताएं __ सम्यग्दर्शनके आठ मद, आठ मल, छः अनायतन और तीन मूढताएं इस प्रकार पच्चीस दोष होते हैं । मिथ्यादृष्टि इन दोषोंके अघोन होकर द्रव्य, क्षेत्र, काल, भव और भावरूप पंचपरावर्तन निरन्तर करता रहता है। ऐसी कोई पर्याय नहीं, जो इसने धारण न की हो, ऐसा कोई स्थान नहीं, जहाँ यह उत्पन्न न हुआ हो तथा जहाँ इसका मरण न हुआ हो, ऐसा कोई समय नहीं, जिसमें इसने जन्म न ग्रहण किया हो, ऐसा कोई भव नहीं, जो इसने न पाया हो। अतः मिथ्यात्वका त्यागकर पच्चीस दोषरहित सम्यग्दर्शन धारण करना मनुष्यपर्यायका फल है।
मद या अहंकार सम्यग्दर्शनका दोष है। शान आदि आठ वस्तुओंका आश्रय लेकर अपना बड़प्पन प्रकट करना मद है। मद आठ प्रकारके होते हैं:
१.ज्ञानमद'-क्षायोपमिक ज्ञानका अहंकार करना कि मुझसे बड़ा कोई ज्ञानी नहीं । मैं सकलशास्त्रोंका ज्ञाता हूँ।
२. प्रतिष्ठा या पूजामद-अपनी पूजा-प्रतिष्ठा या लौकिक सम्मानका गर्व करना प्रतिष्ठा या पूजामद है ।
३. कुलमद-मेरा पितृपक्ष अतीव उज्ज्वल है, मेरे इस वंशमें भाजतक कोई दोष नहीं लगा है ! इस प्रकार पितृवंशका गर्व करना कुलमद है। ___४, जातिमद-मेरा मातृपक्ष बहुत उन्नत है । यह शीलमें सुलोचना, सीता, अनन्तमती और चन्दनाके तुल्य है। इस प्रकार मासाके वंशका अभिमान करना जातिमद है। १. भहं ज्ञानवान् सकलशास्त्रज्ञो बतें' अहं मान्यो महामण्डलेश्वरा मत्पादसेवकाः ।
कुलमपि मम पितृपक्षोऽसीवोज्ज्वल:"1 मम माता संघस्य पत्पुर्दहिता शीलेन सुलोचना-सीतर-अनन्तमती-वन्दनाविका वर्तते । "मम रूपाने कामदेवोऽपि दासत्वं करोतीत्यष्टमदाः ।
--मोक्षपाहुर-टीका गा० २७. सौयंकर महावीर और उनको देशना : ५०५