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ओपशमिक सम्यक्त्व
अनन्तानुबन्धीकी चार और दर्शनमोहनीयकी तीन इन सात प्रकृतियोंके उपशमसे औपशमिक सश्यत्रस्य उत्पन्न होता है । इसके दो भेद हैं--प्रथमोपशम सम्यग्दर्शन और द्वितीयोपशम सम्यग्दर्शन |
व्यधःकरण आदि परिणाम विशुद्धि के द्वारा मिथ्यात्वके जो निषेक उदय में आनेवाले थे, उन्हें उदय अयोग्यकर अनन्तानुबन्धीचतुष्कको भी उदयके अयोग्य किया जाता है। इस प्रकार उदय अयोग्य प्रकृतियोंका अभाव होनेसे प्रथमोपशम सम्यक्त्व होता है । इस सम्यक्त्वके प्रथम समय में मिध्यात्व प्रकृतिके तीन भेद हो जाते हैं: - ( १ ) सम्यक्त्व, (२) मिथ्यात्व और (३) सम्यङिमथ्यात्व | इन तीन प्रकृतियों तथा अनन्तानुबन्धी क्रोध, मान, माया और लोभ इन चार प्रकृतियोंका उदयाभाव होनेपर प्रथमोपशम सम्यक्त्व होता है। इस सम्ययत्वका अस्तित्व चतुर्थगुणस्थानसे सप्तम गुणस्थान तक पाया जाता है ।
अनन्तानुबन्धी-चतुष्ककी विसंयोजना और दर्शनमोहनीयको तीन प्रकृतियोंका उपशम होनेसे द्वितीयोपशम सम्यक्त्व होता है। इस सम्यग्दर्शन करे धारण करनेवाला जीव उपशमश्रेणीका आरोहण कर ग्यारहवें गुणस्थान तक जाता है और वहाँ पतनकर नीचे आता है। पतनकी अपेक्षा चतुर्थ, पंचम और षष्ठ गुणस्थान में भी इसका सद्भाव रहता है।
कायोपशमिक सम्यगस्व
इस सम्यक्त्वका दूसरा नाम वेदकसम्यक्त्व भी है। मिथ्यात्व सम्य मिथ्यात्व अनन्तानुबन्धी क्रोध, मान, माया, लोभ इन छह सर्वघाती प्रकृतियोंके वर्त्तमान कालमें उदय आनेवाले निषेकोंका उदयाभावी क्षय तथा आगामी कालमें उदय आनेवाले निषेकोंका सदवस्थारूप उपशम और सम्यक्त्वप्रकृतिनामक देशघाती प्रकृतिका उदय रहनेपर जो सम्यक्त्व होता है, उसे क्षायोपशमिक सम्यक्त्व कहते हैं । इस सम्यक्त्वमें सम्यक्त्व प्रकृतिका उदय रहनेसे चल, मलिन और अगाढ़ दोष उत्पन्न होते रहते हैं । छह सबंधाती प्रकृतियोंके उदयाभावो क्षय और सदवस्थारूप उपशमकी प्रधानता के कारण क्षायोपशमिक तथा सम्यक्त्व प्रकृति के उदयकी अपेक्षा वेदकसम्यग्दर्शन कहलाता है। इसकी उत्पत्ति सादिमिध्यादृष्टि और सम्यग्दृष्टि दोनोंके होती है । यह सम्यग्दर्शन चारों गतियोंमें उत्पन्न होता है । वस्तुतः सर्वघाती छह प्रकृतियों के उदयाभात्री क्षय और सदवस्थारूप उपशम तथा सम्यक्त्व प्रकृति नामक देशघाती प्रकृतिका उदय अपेक्षित होता है ।
नीर्थंकर महावीर और उनकी देशना : ४९७
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