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आये है । वाराहपुराण में' नाभिराय और मेरुदेव के पुत्र ऋषभदेव तथा उनके भरतादि सौ पुत्रोंका कथन आया है। ऋषभने भरतको हिमालयके दक्षिणवाला क्षेत्र दिया था, जिसका नाम आगे चलकर भरतके नाम पर भारतवर्षं पड़ा । लिङ्गपुराण में नाभिराजको हिमालयके उत्तर-दक्षिणवर्ती प्रदेशका शासक बतलाया गया है । इनके पुत्रका नाम ऋषभदेव आया है । ऋषभको माता मरुदेवी थी । ऋषभके पुत्र भरत हुए, जिनके नामपर इस देशका नाम भारतवर्षं
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पड़ा |
विष्णुपुराण और स्कन्धपुराण में भी ऋषभदेवकं प्रताप एवं प्रभावका चित्रण आया है ।
आचार्यकल्प पण्डित टोडरमलजीने अपने 'मोक्षमार्गप्रकाशक' में बताया है कि प्रथम तीर्थंकर ऋषभ, द्वितीय अजित, सप्तम सुपार्श्व २२वें अरिष्टनेमि और २४वें महावीरका उल्लेख यजुर्वेदमें है। उन्होंने यजुर्वेदका निम्नलिखित मन्त्र उद्धृत किया है
"ओं ऋषभपवित्रं पुरुहूतमध्वरं यज्ञेषु नग्नं परममाह संस्तुतं वरं शत्रुजयंत पशुरिन्द्रमाहुरिति स्वाहा। ओं त्रातारमिन्द्रं ऋषभं वदन्ति । अमृतारमिन्द्र हवां सुगतं सुपार्श्वमिन्द्र हवे शक्रमजितं सद्धर्म मानपुरुहूतमाहुरिति स्वाहा । ओं नग्नं सुधीर दिग्वाससं ब्रह्मगर्भ सनातनं उपमि वीरं पुरुषमहान्तमादित्यवर्णं तमसः परस्तात् स्वाहा । ओं स्वस्ति न इन्द्रो वृद्धश्रवाः स्वस्ति नः पूषा विश्ववेदाः स्वस्ति नस्ताक्ष्यो अरिष्टनेमिः स्वस्ति नो बृहस्पतिर्दधातु । दीर्घायुस्त्वायुर्बलायुर्वा शुभजाताः ओं रक्ष रक्ष अरिष्टनेमिः स्वाहा । "
- उद्धृत आचार्यकल्प पं० टोडरमल, मोक्षमार्गप्रकाशक, पृ० २०८. ऋग्वेद में वातरशनामुनियोंके सम्बन्धकी ऋचाएँ आयी हैं। ये ऋचाएँ ऋषभदेवके जीवन से सम्बन्धित प्रतीत होती हैं । वस्तुतः वातरशनामुनियों को धर्मका उपदेश ऋषभदेव से प्राप्त हुआ होगा। इन ऋचाओं में मुनियोंकी साधनाका वर्णन आया है। लिखा है
१. नाभिर्मेरुदेव्यां पुत्रमजनमद् ऋषभनामानं तस्य भरतो पुत्रश्च तावदग्रजः । तस्य भरतस्य पिता ऋषभो हेमाद्र ेः दक्षिण वर्धमदद्"
- अध्याय १७४, १० ४९.
२. लिंगपुराण अध्याय ४७, श्लोक १९-२४, पृ० ६८.
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३. विष्णुपुराण, अध्याय १ श्लोक २७-२८, पृ० ७७.
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श्लोक ५७.
४. स्कन्धपुराण अध्याय ३७,
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तीर्थंकर महावीर और उनकी देशना ११