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प्राक् कथन भारतवर्षका क्रमबद्ध इतिहास बुद्ध और महावीरसे प्रारम्भ होता है । इनमेंसे प्रथम बौद्धधर्म के संस्थापक थे, तो द्वितीय थे जैनधर्मके अन्तिम तीर्थकर । 'तीर्थकर' शब्द जैनधर्मके चौबीस प्रवर्तकोंके लिए रूढ़ जैसा हो गया है, यद्यपि है यह यौगिक हो । धर्मरूपी तीर्थके प्रवर्तकको ही तीर्थंकर कहते हैं। आचार्य समन्तभद्रने पन्द्रहवे तीर्थकर धर्मनाथको स्तुतिमें उन्हें 'धर्मतीर्थमनचं प्रवर्तयन्' पदके द्वारा धर्मतीर्थका प्रवर्तक कहा है। भगवान महावीर भी उसी धर्मतीर्थ के अन्तिम प्रवर्तक थे और आदि प्रवर्तक थे भगवान् ऋषभदेव । यही कारण है कि हिन्दू पुराणोंमें जैनधर्मको उत्पत्तिके प्रसंगसे एकमात्र भगवान ऋषभदेवका हो उल्लेख मिलता है किन्तु भगवान महाका संकेर तक नहीं है जब उन्होंके समकालीन बुद्धको विष्णुके अवतारोंमें स्वीकार किया गया है । इसके विपरीत त्रिपिटक साहित्यमें निग्गंठनाटपुत्तका तथा उनके अनुयायी निर्ग्रन्योंका उल्लेख बहुतायतसे मिलता है। उन्हींको लक्ष्य करके स्व० डॉ० हनि याकोबीने अपनो जैन सूत्रोंकी प्रस्तावनामें लिखा है-'इस बातसे अब सब सहमत हैं कि नातपूत्त, जी महावीर अथवा वर्षमानके नामसे प्रसिद्ध हैं, बुद्धके समकालीन थे। बौद्ध ग्रन्थों में मिलनेवाले उल्लेख हमारे इस विचारको दृढ़ करते हैं कि नातपुतसे पहले भो निग्रंन्योंका, जो आज जैन अथवा आहेत नामसे अधिक प्रसिद्ध हैं, अस्तित्व था। जब बौद्धधर्म उत्पन्न हआ तब निर्मन्योंका सम्प्रदाय एक बड़े सम्प्रदायके रूप में गिना जाता होगा । बौद्ध पिटकोंमें कुछ निर्ग्रन्थोंका बुद्ध और उनके शिष्योंके विरोधीके रूपमें और कुछका बुद्धके अनुयायी बन जानेके रूप में वर्णन आता है। उसके ऊपरसे हम उक्त अनुमान कर सकते हैं। इसके विपरीत इन ग्रन्थोंमें किसी भी स्थानपर ऐसा कोई उल्लेख या सूचक वाक्य देखनेमें नहीं आता कि निर्ग्रन्थोंका सम्प्रदाय एक नवीन सम्प्रदाय है और नातपुत्त उसके संस्थापक है। इसके ऊपरसे हम यह अनुमान कर सकते हैं कि बुद्धके जन्मसे पहले अति प्राचीन कालसे निर्ग्रन्थोंका अस्तित्व चला आता है।" ____ अन्यत्र डॉ० याकोवीने लिखा है-'इसमें कोई भी सबूत नहीं है कि पात्रनाथ जैनधर्मके संस्थापक थे। जैन परम्परा प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेवको जैन धर्मका संस्थापक मानने में एकमत है। इस मान्यतामें ऐतिहासिक सत्यको सम्भावना है।'
प्राक कथन : ९