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का न होना । साधनका साध्य होनेपर ही होना, अभाव में बिल्कुल न होना। इस नियमको सर्वोपसंहाररूपसे ग्रहण करना तर्क है। प्रमाणसे जाना हुवा पदार्थ सर्क द्वारा पुष्ट होता है। प्रमाण जहाँ पदार्थोंको जानता है, वहां तर्क उनका पोषण करके उनकी प्रमाणप्ताके स्थिरीकरणमें सहायता पहुंचाता है।
तर्कको प्रक्रियानुसार व्यक्ति सर्वप्रथम कार्य और कारणका प्रत्यक्ष करता है और गगेर गार प्रत्यक्ष होनेपर, वह उसके अन्वय-सम्बन्धकी भूमिकापर झकता है । साध्यके अभावमें साधनका अभाव देखकर व्यतिरकके निश्चय द्वारा उस अन्वय ज्ञानको निश्चयात्मक रूप देता है। प्रक्रियाद्वारा यों कहा जा सकता है कि जैसे किसी व्यक्तिने सर्वप्रथम 'महा नस'-भोजनशालामें अग्नि देखो, तथा अग्निसे उत्पन्न होता हुआ धुवाँ भी देखा । पश्चात् किसो तलाबमें अग्निके मभावसे धएका अभाव जाना | पश्चात् रसोईघरमें अग्निसे धुओं निकलता हआ देखकर यह निश्चय करता है कि अग्नि कारण है और धूम कार्य है । यह उपलम्भ और अनुपलम्भनिमित्तक सर्वोपसंहार करनेवाला विचार तर्ककी सीमामें समाहित है। इसमें प्रत्यक्ष, स्मरण, और सादृश्यप्रत्यभिज्ञान कारण होते हैं। इन सबकी पृष्ठभूमिपर 'यत्र यत्र यदा-यदा धूम होता है, तत्र-तत्र, तदातदा अग्नि अवश्य रहती है। इस प्रकारका एक मानसिक विकल्प उत्पन्न होता है। इसे कह या तर्क कहते हैं । तर्कका क्षेत्र केवल प्रत्यक्षके विषयभूत साध्य और साधन ही नहीं है, अपितु अनुमान और आगमके विषयभूत प्रमेयों में भी अन्वय और व्यतिरेक द्वारा अविनाभावका निश्चय करना तर्कका कार्य है । तक भी अपने विषयमें अविसंवादी है । अतएव वह अन्य प्रमाणोंका अनुग्राहक है । जिस तकमें विसंवाद पाया जाता है, उसे ताभास कह सकते हैं। अनुमान
साधनसे साध्यके ज्ञानको अनुमान कहते हैं । अनुमानशब्द अनु + मानसे निष्पन्न है। जिसका अर्थ लिग्रहण और व्याप्तिस्मरणके पश्चात् होनेवाला ज्ञान है । यथार्थत: व्याप्तिनिर्णयके पश्चात् होनेवाला मान-प्रमाण अनुमान कहलाता है। यह ज्ञान अविशद होनेसे परोक्ष है । पर अपने यिषयमें अविसंवादी और संशय, विपर्यय, अनध्यवसाय आदि समारोपोंका निराकरण करनेके कारण प्रमाणभूत है। साधनसे साज्यका नियत ज्ञान अविनाभावके बलसे ही होता है। साधनको देखकर पूर्वगृहीत अविनाभावका स्मरण होता है। तदनन्तर जिस साधनसे साध्यको व्याप्ति ग्रहण की जाती है, उस साधनके साथ वर्तमान साधनका सादश्यप्रत्यभिज्ञान किया जाता है, तब साध्यका अनुमान होता है। वस्तुतः अविनाभाव अनुमानका मूल आधार है। अविनाभाव सहभावनियम और ४० : तीर्थकर महावीर और उनकी प्राचार्य-परम्परा