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परोक्ष प्रमाण है । परोक्ष ज्ञानके पाँच प्रकार है: - ( १ ) स्मरण, (२) प्रत्यभिज्ञान, (३) तर्क, (४) अनुमान और (५) आगम |
स्मृति या स्मरण
संस्कारका उद्बोध होनेपर स्मृति उत्पन्न होती है । धारणारूप संस्कारको प्रकटता के निमित्त से होनेवाले और 'वह' इस प्रकारके आकारवाले ज्ञानको स्मृति कहते हैं । उदाहरणार्थ - यों कहा जा सकता है कि किसी व्यक्तिने पहले देवदत्त नामक पुरुषको देखा और उसने उसके सम्बन्धमें अवधारणा कर ली । पश्चात् धारणारूप संस्कार उबुद्ध हुआ और उसे स्मरण आया कि वह देवदत्त है। इस प्रकार स्मरणरूप ज्ञानको स्मृति माना जाता है ।' यद्यपि स्मरणका विषयभूत पदार्थ सामने नहीं है, तो भी वह हमारे पूर्व अनुभवका विषय तो था ही और उस अनुभवका दृढ़ संस्कार हमें सादृश्य आदि अनेक निमित्तांसे उस पदार्थको मनमें अंकित कर देता है । स्मरण के कारण हो विश्वमें लेन-देन आदि की व्यवस्था चलती है । व्याप्ति स्मरण असंत के बिना शब्दप्रयोग सम्भव ही नहीं है । गुरु-शिष्यादि सम्बन्ध, पिता-पुत्रभाव तथा अन्य अनेक प्रकारसे प्रेम, घृणा, करुणा आदि मूलक समस्त जीवन-व्यवहार स्मरणके द्वारा ही चलते हैं ।
कुछ चिन्तक ग्रहीतग्राही ओर असे अनुलरन्न होनेके कारण स्मृतिको प्रमाण नहीं मानते । पर उनको यह मान्यता व्यवहारमें बाधक है। अनुभव जिस पदार्थको जिस रूपमें ग्रहण करता है, स्मृति उसे उसी रूपमें जानती है । न वह उसके किसी नये अंशका बोध कराती है और न किसी अनुभूत अंशको छोड़ती ही है । "ग्रहीतग्राहिता भी अप्रमाणताका कारण नहीं है । यतः स्मृति द्वारा स्मरण किये गये अर्थ में अविसंवादिता और समारोपविवच्छेदकता विद्यमान है । दूसरी बात यह है कि धारणा नामक अनुभव पदार्थको 'इदम्' रूपसे जानता है । जबकि संस्कारसे होनेवाली स्मृति उसी पदार्थको 'तत्' रूपसे जानती है। इस प्रकार स्मृतिके विषय में ग्रहीत ग्राहिता दोष नहीं आता ।
१. संस्कारो द्बोधनिबन्धना सदित्याकारा स्मृतिः ॥ ३ ॥
संस्कारस्योद्घोषः प्राकट्यं स निबन्धनं यस्याः सा वयोक्ता । तदित्याकाय वा दत्यु लेखिनो । एवम्भूता स्मृतिर्भवतीति शेषः ।
- प्रमेयरत्नमाला, ३-३, १० १३५. २. सर्वे प्रमाणादयोऽनविगतमर्थं सामान्यतः प्रकारतो वाऽधिगमयन्ति स्मृति: पुननं पूर्वानुभवमर्यादानतिक्रामति, सद्विषया तनविषया वा, न तु तदधिकविषया, सोऽयं वृत्त्यन्तराद्विशेषः स्मृतेरिति विमृशति । तस्ववैशा० ( चोक्षम्बा संस्करण ) १।१७.
४३६ : तीर्थंकर महावीर और उनकी आचार्य परम्परा