________________
उत्तराद्ध में तथा समस्त स्वयंभरमण समुद्र में तथा चारों कोनोंकी पृथिवियोंमें कर्मममिकी-सी रचना है। भोगभूमिमें वोन्द्रिय, श्रीन्द्रिय और पतुरिन्द्रय जीव नहीं होते । समस्त द्वीप-समुद्रोंमें भवनवासी और व्यन्तरदेव निवास करते हैं। कल्पहास : विवेचन
भोगभूमि और कर्मभूमिके साथ कल्पकालका घनिष्ठ सम्बन्ध है। जलालोको रहयो नीदी कलाके परिज्ञानके अभावमें संभव नहीं है। ___बीस कोडाकोडी अद्धासागरके समयोंके समूहको कल्प कहते हैं । कल्पकाल के दो भेद हैं:-अबसर्पण और (२) उत्सर्पण । इन दोनों कालोंका प्रमाण दसबस कोडाकोडी सागर है। अवसर्पण कालमें आयु, शरीर, ऐश्वर्य, विद्या, बुद्धि आदिको उत्तरोत्तर होनता और तस्सपंणकालमें उक्त बातोंकी उत्तरोत्तर वृद्धि होती है । अवसर्पणकालके छः भेद हैं:-(१) सुषम-सुषम, (२) सुषम, (३) सुषम दुषम, (४) दुःषम-सुषम, (५) दुःषम और (६) दुःषम-दुःषम । ___ अवसर्पणके छहों काल व्यतीत हो जाने पर उत्सर्पणके छ: काल आते है । इस प्रकार अवसर्पणके पश्चात् उत्सर्पण और उत्सर्पणके पश्चात् अवसर्पणका क्रम चलता रहता है। ___सुषम-सुषमकालका प्रमाण चार कोडाकोडी सागर, सुषमका प्रमाण तीन कोडाकोडो सागर, सुषम-दुःषमका प्रमाण दो कोडाकोडी सागर, दुःषम सुषमका प्रमाण बयालीस हजार वर्ष कम एक कोडाकोडी सागर, दुःषमका इक्कीस हजार वर्ष और दुःषम-दुःषमका इक्कीस हजार वर्ष प्रमाण है।
अनेक कल्पकाल बीतनेपर एक हुंडावसर्पणकाल आता है, जिसमें कई विचित्र बातें घटित होती हैं। यथा चक्रवर्तीका अपमान, तीर्थंकर के पुत्रीका जन्म एवं शलाकापुरुषोंको संख्यामें हानि आदि बातें घटित होती हैं।
पहले कालके आदिमें मनुष्योंके शरीरको ऊंचाई तीन कोश और अन्त में दो कोश होती है । दूसरेके आदिमें दो कोश और अन्तमें एक कोश ऊंचाई होती है। तीसरेके आदिमें एक कोश, अन्तमें पाँचसौ धनुष, चौथेके आदिमें पांचसो धनुष और अन्त में सात हाथ कचाई होती है। पांचवेंके आदिमें सात हाथ, अन्तमें दो हाथ और छठेके आदिमें दो हाथ और अन्तमें एक हाथ ऊंचाई रह जाती है। षटकालोंमें भोगभूमि और कर्मभूमि : व्यवस्था
अवसर्पणके प्रथमकालमें उत्कृष्ट भोगभूमिको रचना रहती है। इस कालमें ४०२ : तीर्थंकर महावीर और उनको आचार्य-परम्परा