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है । अन्तमें स्वयंभूरमण समुद्र है । चारों कोनोंमें पृथ्वी है । पुष्करद्वीपके बीचोंबीच मानुषोत्तर पर्वत है, जिससे पुष्करद्वीप के दो भाग हो गये हैं। जम्बूद्वीप, घातको खण्ड और पुष्करार्द्ध, इस प्रकार ढाई द्वीपमें मनुष्य रहते हैं, इससे बाहर मनुष्य नहीं है । स्थावर जीव समस्त लोकमें भरे हुए हैं। जलचर जीव लवणोदधि, कालोदधि और स्वयंभूरमण इन तीन प्रमुदोमं निवास करते हैं।
जम्बूद्वीप एक लाख योजन चौड़ा गोलाकार है। इसमें पूर्व और पश्चिम दिशामें लम्बायमान दोनों भोर पूर्व-पश्चिम समुद्रको स्पर्श करते हुए (१) हिमवत्, (२) महाहिमवान्, (३) निषध, (४) नील, (५) रुक्मि और (६) शिखरी ये छ: कुलाचल हैं, इन्हें वर्षधर भी कहा जाता है । इनके निमित्तसे जम्बूद्वीपके सात भाग हो गये हैं । दक्षिण दिशाके प्रथम भागका नाम भरत क्षेत्र, द्वितीय भागका नाम हैमवत और तृतीय भागका नाम हरिक्षेत्र है । इसी प्रकार उत्तर दिशाके प्रथम भागका नाम ऐरावत, द्वितीय भागका नाम हैरण्यवत और तृतीय भागका नाम रम्यक क्षेत्र है । मध्य भागका नाम विदेह क्षेत्र है । भरत क्षेत्रको चोड़ाई ५२६ / ६ /१९ योजन अर्थात् जम्बूद्वीपकी चौड़ाईके एक लाख योजनके १९० भागों में से एक भाग प्रमाण है । हिमवत पर्वतकी चौड़ाई दो भाग हैमवत क्षेत्रकी चार भाग, महाहिमवत् पर्वतको आठ भाग, हरिक्षेत्रकी सोलह भाग और freshी बत्तीस भाग प्रमाण है । सब मिलाकर ६३ भाग प्रमाण हुए। इसी प्रकार उत्तर दिशामें ऐरावत क्षेत्रसे लेकर नीलपर्यंत तक ६३ भाग है । मध्यका विदेह क्षेत्र ६४ भाग है । इस प्रकार कुल मिलाकर ६३ + ६३ + ६४ = १९० भाग प्रमाण है !
हिमवत् पर्वतकी ऊँचाई सो योजन, महाहिमवत्की दो सो योजन, निषधकी चार सौ योजन नीलको चार सो योजन, रुक्मिकी दो सौ योजन और शिखरीकी सौ योजन है। इन सभी कुलाचलोंको चौड़ाई ऊपर, नीचे और मध्य में समान है । इन कुलाचलोंके पखवाड़ों में अनेक प्रकारकी मणियां है। ये हिमवदादिक छहों पर्वत क्रमशः सुवर्ण, रजत, तप्तसुवर्ण, वैहूयं, चांदी और सुवर्णके वर्ण वालें हैं । इन कुलाचलोंके ऊपर पद्म, महापद्म, तिमिच्छ, केसरी, महापुण्डरीक और पुण्डरीक संज्ञक छा नालाब हैं। इन कुण्डोंकी लम्बाई १०००१ २००० १४०००/४०००|२००० और १००० योजन है। चौढाई ५०० ११०००/२०००/ २०००|१०००/५०० योजन है । गहराई १०/२०/४०/४० | २०११० योजन है । इन तालाबों में पार्थिव कमल हैं, जिनकी ऊंचाई और चौड़ाई १/२/४/४/२/१ योजन है । इन कमलोंपर पल्योपम आयुवाली श्री, हो, घृति, कीर्ति, बुद्धि और लक्ष्मी जातिको देवियों सामानिक और पारिषद् जातिके देवों सहित क्रमसे निवास करती हैं ।
४०० : तीर्थंकर महावीर और उनकी आचार्य-परम्परा