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से स्थावरपर्याय वादरनामकर्मोदयके निमित्तसे बादरपर्याय और सूक्ष्मनामकर्मोदयके निमित्तसे सूक्ष्मपर्यायकी प्राप्ति होती है। जिनका निवास आधारके बिना नहीं पाया जाता, वे बादर जोव है और जिन्हें आधार की आवश्यकता नहीं पड़ती, वे सूक्ष्म है ।
पर्याप्त नामकर्मके उदयके निमित्त से प्राणी अपने-अपने योग्य पर्याप्तियों को पूर्ण करते हैं । अपर्यासनामकर्मके उदयसे अपने- अपने घोग्य पर्याप्तियोंको पूर्ण नहीं करते हैं। प्रत्येकनामकर्मोदयके निमित्तसे प्रत्येकजीवका शरीर प्राप्त होता है और जिसका उदय अनन्त जीवों को एक साधारण शरीर प्राप्त कराने में निमित्त है, वह साधारण नामकर्म है ।
स्थिरनामकर्मोदय के निमित्तसे शरीरके रस, रुधिर, मेदा, मज्जा, अस्थि, मांस और वीर्य स्थिर होते हैं और जिसका उदय इनके क्रमसे परिणमनमें निमित्त है, वह अस्थिर नामक है । शुभनामकर्मोदय के निमित्तसे अंगोपांग प्रशस्त और अशुभनामकर्मोदयके निमित्तसे अंगोपांग अप्रशस्त होते हैं । स्त्री और पुरुषोंके निम्ति शुभ कर्म है, और दुर्भाग्य निमित्त दुभंग नामकर्म है । सुस्वर नामकर्मोदय निमित्तसे बुर स्वर, दुःस्वर नाम कर्मोदयके निमित्तसे कटु स्वर, आदेय नामकर्मोदयके निमित्तसे 'बहुमान्य और अनादेय नामकर्मके उदयसे अमान्य होता है । यशःकीति नामकर्मोदयके निमित्तसे गुणप्रकाशनरूप यशकी प्राप्ति और अयश शः कीर्ति नामकर्मोदयके निमित्तसे अपयशकी प्राप्ति होती है ।
जिस कर्मका उदय उच्चगोत्रके प्राप्त करने में निमित्त है, वह उच्चगोत्र और जिसका उदय नीचगांत्रके प्राप्त करनेमें निमित्त है, वह नोचगोत्र है । गोत्र, कुल, वंश और संतान एकार्थवाचक शब्द है । गोत्रका आधार चारित्र है । जो प्राणो अपने वर्तमान जीवनमें चारित्रको स्वीकार करता है और जिसका सम्बन्ध भी ऐसे ही लोगोंसे होता है, वह उच्चगोत्रीय है, और इसके विपरीत नोचगोत्रीय हैं । दान, लाभ, भोग, उपभोग और वीर्यं अन्तरायके उदय के निमित्तसे दान करने, लाभ होने, भोगरूप परिणामोंके होने, उपभोगरूप परिणामों के होने एवं आत्मवीर्यके प्रकट होनेमें बाधा आती है ।
कर्मोको स्थिति
मोहनीय कर्मकी उत्कृष्ट स्थिति सत्तर कोड़ा- कोड़ी सागरोपम है । नाम और गोत्रको उत्कृष्ट स्थिति बीस कोड़ा कोड़ी सागरोपम है। आयुकर्मकी उत्कृष्ट स्थिति तैंतोस सागरोपम है । ज्ञानावरण, दर्शनावरण, वेदनीय और ३८८ : तीर्थंकर महावीर और उनकी आचार्य-परम्परा