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तप आदि साधनाओंके द्वारा कोको बलात् उदयमें लाकर बिना फल दिये ही झड़ा देना अविपाक निर्जरा है | स्वाभाविक क्रमसे प्रतिसमय कोका फल देकर झड़ते जाना सविपाक निर्जरा है। यह निर्जरा प्रत्येक प्रामीको प्रतिक्षण होती रहती है। इसमें पुराने वमोंका स्थान नवीन कर्म लेते जाते हैं । गुप्ति, समित्ति और तपरूपी अग्निसे कर्मोको फल देनेके पहले ही भस्म कर देना अविपाक निर्जरा है । यह मिथ्या धारणा है कि कोकी गति टल नहीं सकती । पुराने संस्कार हो कर्म हैं। यदि आत्मामें पुरुषार्थ है, तप-साधना है, तो क्षणमात्रमें पुरातन वासनाएं क्षीण हो सकती हैं।
विवश होकर, हाय-हाय करते हुए कोका फल भोगना और उन्हें निरित करना तो एक साधारण सी रात है । अजित कर्म-संस्कार इच्छापूर्वक समभावसे कष्ट सहने एवं तपाचरण करने आदिसे ही नष्ट होते हैं । अत: नवीन कोंके बन्धको रोकना और संचित कोकी निर्जरा करना जीवका पुरुषार्थ है। मोक्ष
कर्म-बन्धनोंसे छुटकारा प्राप्त करना मोक्ष है। यहां कर्मोके नाशका अर्थ इतना ही है कि कर्मपुद्गल जीवसे भिन्न हो जाते हैं। कामंणवर्गणाएं यात्माने साथ संगुल होने का मात्र के दुका घात करनेसे कमंत्वपर्यायको धारण करती हैं और मोक्षमें यह कर्मपर्याय नष्ट हो जाती है । अर्थात् कर्मबन्धनसे छूटकर शुद्ध एवं सिद्ध हो जाती है, उसी तरह कर्मपुद्गल भी अपनी कर्मस्वपर्यायसे उस समय मुक्त हो जाते हैं। अतः बारमा और कमपुद्गलका सम्बन्ध छूट जाना ही मोक्ष है। मोक्षमें दोनों द्रव्य अपने निज स्वरूपमें स्थित हो जाते हैं। न तो आत्मा दोपकको तरह बुझ जाती है और न कर्म-पुद्गलका ही सर्वथा समूल नाश होता है। दोनोंको पर्यायान्तर हो जाती है। जीव शुद्ध दशाको प्राप्त हो जाता है और पूगल मी यथासम्भव शुद्ध या अशुद्ध स्थितिको प्राप्त होता है। ___ इन सप्त तत्वोंके स्वरूप विवेचनके अनन्तर कर्म-सिद्धान्त या जीव और कर्मके सम्बन्धपर विचार करना परमाश्यक है। साधारणतः कर्मके दो रूप हैं:-(१) कर्म और (२) नोकम । शरीर, परिवार, धन, सम्पत्ति बादि सब नोकमं हैं। इन नोकोके भी दो प्रकार बतलाये गये हैं:-बद्ध नोकर्म और अवद्ध नोकर्म | बद्धका अर्थ है बंधा हआ और अबढका बर्ष है नहीं बंधा हुआ। संसारदशामें जहाँ शरीर है, वहाँ यात्मा है और जहां बात्मा है, वहां शरीर है। दोनों दूध और पानीकी तरह एक दूसरेसे बंधे हुए हैं। यद्यपि इन दोनोंका स्वरूप मार सत्ता पथक्-पृथक् है, पर अनादि कालसे शरीरमें ३७८. : तीर्थकर महावीर और उनकी आचार्य-परम्परा
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