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अग्नि स्वयं उष्ण होती है और उसकी प्रभा भी उष्ण होती है, किन्तु आतप और उद्योतके विषय में यह बात नहीं है । आतप मूलमें ठंडा होता है, पर उसकी प्रभा उष्ण होती है । उद्योतकी प्रभा भी ठंडी होती है और मूल भी । आतपमें ऊर्जाका अधिकांश तापकरणोंके रूपमें प्रकट होता है और उद्योतमें अधिकांश उर्जा प्रकाश-किरणों के रूप में प्रकट होती है !
संक्षेप में बंधना, सूक्ष्मता, स्थूलता, चौकोर, तिकोन, आयताकार आदि विभिन्न आकृतियाँ सुहावनी चाँदनी, मंगलमय उबाकी लाली आदि पुद्गलस्कन्धोंकी पर्यायें हैं । निरन्तर गतिशील और उत्पाद-व्यय- प्रोव्यात्मक परिण मनशील अनन्तानन्त परमाणुओंके परस्पर संयोग और विभाग पुद्गलरूप हैं। पुलके विभिन्न प्रकारके परिणमनोंके कारण ही इस सृष्टिकी व्यवस्था चल रही है । अतः पृथ्वी, आप, तेज, वायु, आदि भी पुद्गल के अन्तर्गत हैं । प्रकाश, गर्मी, उद्योत, आतप प्रभृति शक्तियाँ किसी ठोस आधार में रहनेवाली हैं और यह आधार पुद्गल स्कन्ध ही है । शक्तियाँ जिन माध्यमोंसे गति करतो हैं, उन माध्यमोंको स्वयं उस रूपसे परिणत करासी हुई हो जाती हैं। अतएव पुद्गल आधारके बिना इनको भी उत्पत्ति संभव नहीं है । पुद्गरुके अम्य भेद
पुद्गल जातीय स्कन्धों में विभिन्न प्रकारके परिणमन होनेसे पुद्गलके २३ वर्गणात्मक भेद है':-(१) अणुवगंणा, (२) संख्याताणुवर्मणा, (३) असंख्याताणुवर्गणा, (४) अनन्ताणुवर्गणा, (५) आहारवगंणा, (६) अग्राह्यवर्गणा, (७) तैजसवर्गणा, (८) अग्राह्यवर्गणा ( ९ ) भाषा वर्गणा, (१०) अग्राह्यवगंणा (११) मनोवगंगा, (१२) अग्राह्यवर्गणा, (१३) कार्मण वर्गणा, (१४) ध्रुववर्गणा, (१५) सान्तरनिन्तरवगंणा, (१६) शून्यवगंणा, (१७) प्रत्येकशरीरवर्गणा, (१८) ध्रुवशुष्पवर्गणा, (१९) बादरनिगोदवगंणा, (२०) शून्यवर्गणा, (२१) सूक्ष्मनिगोदवर्गणा, (२२) नभोवणा और ( २३ ) महास्कन्धवर्गणा ।
इन तेईस वर्गणाओं में आहारवर्गणा, भाषावगंणा, मनोवगंणा और कामंणवर्गणा ये पाँच ग्राह्मवर्गणाएं हैं । इन वर्गणाओं में ऐसा नियम नहीं है कि जो परमाणु एक बार कर्मवगंणारूप परिणत हुए हैं, वे सदा कसंवर्गणारूप हो रहेंगे, अन्यरूप नहीं होंगे या अन्यपरमाणु कर्मवणारूप न हो सकेंगे। प्रत्येक द्रव्यमें अपनी-अपनी मूल योग्यताओके अनुसार जिस-जिस प्रकारकी सामग्री एकत्र होती
१. गोम्मटसार - जीव काण्ड, गाथा ५९३ और ५९४. २. यही गाथा ५९५.
३५६ : तीर्थंकर महावीर और उनकी आचार्य-परम्परा