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सूक्ष्मस्व
और स्थूलश्व : पुद्गलपर्याय
सूक्ष्मता और स्थूलता भी पुद्गलकी पर्यायें है; यतः इनकी उत्पत्ति पुद्गल से ही होती है । जो वस्तु नेत्रसे दिखलायी न पड़े अथवा कठिनाईसे दिखलायी पड़े वह सूक्ष्म कहलाती है । इसके दो भेद है:- १. अन्त्य सूक्ष्मत्र और स्थूलल २. आपेक्षिकत्व और स्कूल ।
परमाणु अन्त्य सूक्ष्मत्वका और जगद्व्यापी महास्कन्ध स्थूलत्वका उदाहरण हैं । बेल, आंवला, और बेर आपेक्षिक सूक्ष्मत्व के और इनके विपरीत बेर आंवला और बेल आपेक्षिक स्थूलत्वके उदाहरण है। सूक्ष्मत्वके उदाहरणमें उत्तरोत्तर सूक्ष्मता और स्थूलत्वके उदाहरण में उत्तरोत्तर स्थूलता हैं । ये दोनों पोद्गलिक हैं ।
संस्थान : पुद्गल पर्याय
संस्थानशब्दका अर्थ आकार या आकृति है । आकार पुद्गलद्रव्यमें ही उत्पन्न होता है, अतः इसे पुद्गलकी पर्याय कहा है । संस्थानके दो भेद हैं:(१) इत्थंलक्षण संस्थान, (२) अनित्थंलक्षण संस्थान ।
जिस आकारका 'यह इस तरहका है, इस प्रकारसे निर्देश किया जा सके, वह 'इत्थंलक्षण' संस्थान है और जिसका निर्देश न किया जा सके, वह 'अनित्थंलक्षण' संस्थान है । गोल, त्रिकोण, चौकोर, आयताकार आदि संस्थानोंके आकारोंका निर्देश करना सम्भव है, अतः यह 'इत्थंलक्षण' संस्थान है । मेध आदिका सस्थान - आकार अवश्य है, पर उसका निर्धारण संभव नहीं, अतः यह 'अनित्थंलक्षण' संस्थान है।
संस्थान पुद्गलस्कन्धों में ही संभव है, पुद्गलस्कन्धों के अभाव में संस्थानकानिर्धारण नहीं होता है । अतएव विभिन्न आकृतियाँ पुद्गलकी पर्याय है | भेद: पुद्गलपर्याय
पुद्गल पिण्डका भंग होना भेद है । पुद्गलके विभिन्न भंग - टुकड़े उपलब्ध होते हैं, अतः भेदको भी पुद्गल पर्याय कहा गया है। भेदके छह प्रकार हैं:१. उत्कर— बुरादा - लकड़ो या पत्थर आदिका करोंत आदिसे भेद
करना ।
२. चूर्ण
आदिका सत्तू या आटा ।
३. खण्ड - घट आदिके टुकड़े-टुकड़े हो जाना खण्ड है ।
३५४ : तीर्थंकर महावीर और उनको आचार्य मरम्परा