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होनेपर कारणजन्य होते हैं जैसे घटादिक । इस प्रकार अनुमान प्रमाणसे जीव पदार्थ सिद्ध है ।
यदि भूतचतुष्टयसे जीव की उत्पत्ति मानते हैं, तो यह मूतचतुष्टय जीवका निमित्त कारण है या उपादान कारण ? यदि निमित्तकारण है, तो भूतचतुष्टय से भिन्न उपादानकारण कोई दूसरा ही होगा और वह उपादानकारण जीव ही हो सकता है । यदि भूतचतुष्टय जीवका उपादानकारण है, तो ये चारों मिलकर जीवके उपादानकारण हैं, अथवा पृथ्वी, अप, तेज और वायु ये चारों पृथक्-पृथक् उपादान कारण हैं ? यदि पृथक्-पृथक् जीवके उपादानकारण हैं, तो पृथ्वीके बने हुए जीव अन्य, जलसे निर्मित्त अन्य पवन से निर्मित अन्य और अग्नि निर्मित अन्य इस प्रकार चार तरहके जीव होने चाहिए । पर चार तरहके जीव प्रतीत नहीं होते । अतएव भूतचतुष्टय भिन्न-भिन्न रीतिसे उपादान कारण नहीं है। चारों मिलकर भी जीवके उपादानकारण नहीं हो सकते, क्योंकि घटपटादि कार्योंका उपादानकारण सजातीय होता है। तथा यद जोवका उपादानकारण भूतचतुष्टय है, तो भूतचतुष्टयके स्पर्श, रस, गंध, वर्णगुण जोव में आने चाहिए। पर ये चारों गुण जीवमें नहीं होते । यदि ये चारों गुण जीवमें होते, तो जीव भी इन्द्रियगोचर होता । परन्तु जीव इन्द्रियगोचर नहीं है । इसलिये जीव भूतचतुष्टयजन्य नहीं है । जीवको स्वतन्त्रसिद्धि
जीव या आत्माका अस्तित्व सिद्ध हो जानेके पश्चात् जीवका स्वतन्त्र अस्तित्व स्वीकार करना आवश्यक है। जो स्वतन्त्र अस्तित्व नहीं मानते, उनसे यह पूछा जाय कि जो जीव द्रव्य नहीं है, तो वह जीव गुण है या पर्याय ? इनके अतिरिक्त कोई वाच्य हो नहीं सकता । अतः जिसने बाह्य पदार्थ हैं, वे द्रव्य, गुण, और पर्याय इन तीनोंमेंसे किसी न किसीके वाच्यमें अन्तभूत हैं । यदि जीव गुण है, तो उसका गुणी कौन है ? गुणीके बिना गुण नहीं होता 1 यदि यह माना जाय कि जीवगुणका गुणी जीवद्रव्य है तो जीवद्रव्य स्वतन्त्र सिद्ध होता है । यदि यह कहा जाय कि जीवगुण पुद्गलद्रव्यका है, तो गुण नित्य होता है । इसलिये घटपटादिक समस्त पुद्गल द्रव्योंमें उसकी प्रतीति होनी चाहिये । परन्तु प्रतीति होती नहीं । अतएव जीव पुद्गलका गुण नहीं है ।
यदि जीव पर्याय है, तो पर्याय किसी गुणकी अवस्था - विशेष कही जाती है | अतः जीवपर्याय पुद्गलके किस गुणकी अवस्था विशेष है और उस गुणका नाम क्या है ? तथा उसका लक्षण क्या है ? न तो कोई ऐसा गुण ही हैं और न कोई उसका लक्षण हो है, जिसके आधारपर जीवपर्याय पुद्गलगुणकी मानी जा सके । अतएव संक्षेपमें जीव पदार्थका अस्तित्व स्वतन्त्र रूपमें सिद्ध
३३६ : तीर्थंकर महावीर और उनकी आचार्य परम्परा